उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘बहुत बढ़िया लिफाफा है। किसने भेजा है, बेटा?’’ पिता ने पूछ लिया।
‘‘पिताजी! परीक्षा का परिणाम होगा। अवश्य विष्णु ने भेजा होगा।’’ इतना कहते-कहते उसने पत्र खोल डाला।
सुन्दर लिफाफे में बहुत बढ़िया कागज पर पत्र लिखा हुआ था। इन्द्र ने विचार किया कि यह विष्णु का नहीं हो सकता–एक तो उसने इतना बढ़िया लिफाफा और कागज विष्णु के पास कभी नहीं देखा था, दूसरे लिखावट भी विष्णु की नहीं थी।
उसने सबसे पहले पत्र के अंत में लिखने का नाम देखा। नाम था रजनी।
‘‘ओह!’’इन्द्रनारायण के मुख से निकल गया। रामाधार उत्सुकता से लड़के के मुख की ओर देख रहा था। ‘ओह!’ सुन उसको सन्देह हो गया कि लड़का अनुत्तीर्ण हो गया है।
इन्द्र पत्र पढ़ रहा था। पत्र में रजनी ने लिखा था, ‘‘मैं अपने भाई के साथ नैनीताल आई हूँ। यहाँ पर्याप्त सर्दी है। दिन के समय कुछ गर्मी होती है। इस पर भी उतनी नहीं, जितनी लखनऊ में इस मास में होती है। रात तो बहुत ही सुहावनी होती है। बिना कम्बल ओढ़े सोया नहीं जा सकता।
‘‘झील का दृश्य तो अद्वितीय है। सायंकाल नौका मिल जाती है और नौका-विहार से बहुत ही आनन्द रहता है। मेरे भाई नैनीताल बोटिंग क्लब के सदस्य हैं। अतः हमको बोट लेने में कुछ कठिनाई नहीं होती।
‘‘मैं आशा कर रही थी कि आप अपने पास होने की सूचना और मुझ को फर्स्ट डिवीजन पा जाने की बधाई भेजेंगे। परीक्षा-फल निकले एक सप्ताह हो गया और आपकी बधाई नहीं आई।
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