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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘यह समझ कि आप तो विवाहित हैं और क्या जाने किसी के मोह में फँस रजनी बहन को विस्मरण कर चुके हों, चुप थी परन्तु अब तो आशा करती हूँ कि आपके साथ मेडिकल कॉलेज में प्रवेश मिल जायेगा। आपको छात्रवृत्ति मिलने की पूर्ण आशा है।

‘‘बहन तो भाई को नहीं भूल सकती। अतः मेरी बधाई मिले और देखिये, उसको, जिसने आपको ऐसा कैद कर रखा है कि लिखने का वचन देकर भी भूल गये, मेरा नमस्कार कहना।’’

यह जानकर तो इन्द्र को अत्यन्त प्रसन्नता हुई कि वह बहुत अच्छे अंक लेकर पास हो गया है, परन्तु उसको विष्णु तथा नानाजी की ओर से सूचना न आने पर विस्मय हुआ। वह इसका अर्थ समझने में लीन बितर-बितर पत्र की ओर देखता रह गया। पिता ने चिन्ता प्रकट करते हुए पूछ लिया, ‘‘क्या बात है, इन्द्र? किसका पत्र है यह?’’

इन्द्र ने पत्र पिता के हाथ में दे दिया। पत्र अंग्रेजी में लिखा था और रामाधार अंग्रेजी बिल्कुल नहीं जानता था। पत्र लौटाते हुए रामाधार ने कहा, ‘‘क्या करूँ इसका, तुम्हीं बताओ तो पता चले।’’

‘‘पिताजी!’’ इन्द्र ने कुछ लज्जा अनुभव करते हुए कहा, ‘‘मैं भूल ही गया था कि यह मलेच्छ भाषा में लिखा है। सुनिये, इस पत्र को लिखने वाली हमारी श्रेणी में पढ़ने वाली एक लड़की रजनी है। उसने लिखा है कि मैं पास हो गया हूँ और कदाचित् छात्रवृत्ति मिल जायेगी। परीक्षा-फल निकले एक सप्ताह हो चुका है और वह मुझको बधाई देती है।’’

‘‘तो तुम उत्तीर्ण हो गये हो। परन्तु तुम्हारा मुख तो लम्बा हो रहा है। मुझको तो भय लग गया था कि तुम कहीं अनुत्तीर्ण न हो गये हो।’’

‘‘नहीं पिताजी! ऐसी कोई बात नहीं। इस पर भी मैं आशा करता था कि नानाजी का पत्र आयेगा। इससे कुछ विस्मय कर रहा था।’’

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