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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘कहीं उसने हँसी तो नहीं की?’’

‘‘मुझको उस पर विश्वास है। वह मुझसे कभी हँसी नहीं करती।’’

‘‘परन्तु पत्र तो बहुत लम्बा है। और क्या लिखा है इसमें?’’

रामाधार को सन्देह हो रहा था कि वह उसकी सहपाठिनी है, न जाने क्या-क्या अनर्गल बातें लिखी होंगी।

इस पर इन्द्रनारायण ने पत्र को पढ़कर अक्षरशः अनुवाद कर दिया। पत्र सुनकर पिता ने कहा, ‘‘हँसी तो प्रतीत नहीं होती, पर वह जानती है कि तुम्हारा विवाह हो चुका है?’’

‘‘हाँ पिताजी! श्रेणी के सब विद्यार्थी जानते हैं।’’

‘‘और उसको यह पता नहीं कि तुम्हारा गौना नहीं हुआ?’’

‘‘उसका अनुमान है कि हो चुका है।’’

‘‘वह तुमको भाई लिखती है?’’

‘‘हाँ, पिताजी!’’

‘‘तुम्हारी श्रेणी में और कितनी लड़कियाँ थीं?’’

‘‘दो और थीं, परन्तु वे ईसाइन थीं।’’

‘‘वे भी पास हो गयी हैं?’’

‘‘मुझको तो कुछ भी पता नहीं। नानाजी को समाचार-पत्र भेज देना चाहिये था।’’

‘‘मेरा विचार है कि तुम लखनऊ चले जाओ। वहाँ जाकर ठीक-ठीक पता लेकर आओ कि क्या बना है?’’

उसी मध्याह्न इन्द्रनारायण लखनऊ के लिये रवाना हो गया।

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