लोगों की राय

उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

410 पाठक हैं

संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव

5

ऐंग्लों-इण्डियन परिवारों की परम्परा हिन्दुस्तानी परिवारों से सर्वथा भिन्न होती है। यूँ तो हिन्दुस्तानी परिवारों के पुरुष भी, विशेष रूप से जो उच्च सरकारी पदवियों पर पहुँच जाते हैं, भारतीय आचार-विचार को छोड़ अंग्रेजी व्यवहार को स्वीकार कर लेते हैं; परन्तु घरों में स्त्रियाँ विशेष रूप से वे, जो स्कूलों अथवा कॉलेजों में नहीं पढ़ी होतीं, भारतीयता से बँधी रहने के कारण, हिन्दुस्तानी परिवारों का वातावरण विदेशी होने से बाधा बनी रहती हैं। इसी बात ने हिन्दुओं को सात सौ वर्ष तक मुसलमानी राज्याधीन रहने पर भी, हिन्दू ही बनाये रखा। मुसलमानी काल में पुरुष मुसलमानों के सम्पर्क में आते थे। बहुत-से शासकों की सेवा-वृत्ति भी करते थे और कुछ-न-कुछ अंश तक मुसलमानी संस्कारों को ग्रहण कर लेते थे, परन्तु स्त्रियाँ उस काल के विदेशी धर्म तथा संस्कारों से सर्वथा पृथक् रहने के कारण हिन्दू-परिवारों को हिन्दू बनाये रखने में सफल रहीं। यही बात अंग्रेजी काल में चल रही थी। परन्तु यह अब कुछ अधिक काल तक नहीं चल सका। स्त्रियों को शिक्षित करने की योजना चली और लड़कियों के स्कूल-कॉलेज खुले। इस प्रकार जो बात सात सौ वर्ष का मुसलमानी राज्य नहीं कर सका, वह कार्य कुछ ही वर्षों की स्कूल-कॉलेज की शिक्षा करने लगी।

इसके साथ ही जाति-पांति के बंधन ढीले होने लगे। जातियों में ही विवाह की प्रथा ने भी हिन्दू-समाज को बहुत सीमा तक हिन्दू रहने में सहायता दी है। जब भी किसी हिन्दू के घर मुसलमान लड़की विवाह कर आयी तो उसका परिणाम यह हुआ कि उस घर का वातावरण पहले अर्धहिन्दू और पश्चात् पूर्ण रूप में अहिन्दू हो गया।

अब एक अन्य बात हुई। लड़के-लड़कियों की सह-शिक्षा ने तो रहे-सहे हिन्दुत्व के दुर्ग को भेदने में सहयोग देना आरम्भ कर दिया। हिन्दू-संस्कारों की धुरी विवाह पर प्रतिबन्धों के ढीला होते ही हिन्दू-संस्कार भी विलुप्त होने लगे।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book