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उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
इन्द्र उनको भीतर ले गया। सब रजनी को विदा करने में लगी हुई थीं। उर्मिला ने रजनी को पति के साथ जाने के लिये देखा तो वे इन्द्र को माँ का ध्यान आकर्षित करने से मना कर अन्य आयी स्त्रियों में खड़ी हो गयी।
लड़की के विदा होते समय घर वाले रोते ही हैं, यह स्वाभाविक ही है। अतः आँखों में आँसू भरे साधना और उर्मिला के वहाँ खड़े होने पर किसी को आश्चर्य नहीं हुआ। साधना ने आगे बढ़कर रजनी का घूँघट जो किंचित्मात्र ही था, एक ओर करके कह दिया, ‘‘रजनी! देखो, तुमने तो बुलाया नहीं। इस पर भी मैं आ गयी हूँ।’’
रजनी ने देखा, पहचाना और गले मिली। इस समय उसकी दृष्टि उर्मिला पर जा पड़ी। उसने कह दिया, ‘‘भाभी! आप भी!’’ वह झुककर चरण-स्पर्श करने लगी तो उर्मिला ने उसे पकड़कर गले लगा लिया और सिर पर हाथ रख प्यार देते हुए कहा, ‘‘चिरंजीव रहो बेटी! सौभाग्यवती बनो।’’
जब साधना और उर्मिला रजनी से मिल रही थीं तो सौभाग्यवती और राधा ने उनको पहचान लिया। इस पर भी इस समय वे चुप रहीं। सौभाग्यवती नहीं जानती थी कि वे किससे मिलने आयी हैं और प्रत्यक्ष में आयी हैं अथवा चोरी-चोरी।
रजनी विदा हुई तो साधना बहन से मिली। सब इन्द्र के कमरे में एकत्रित हो गये। सबके कुशल-समाचार बताये जाने पर साधना ने अपने घर की अवस्था बता दी।
‘‘विष्णु के देहान्त से पिताजी को बहुत सदमा पहुँचा है। इससे वह पहले से भी अधिक विक्षिप्त-मन रहने लगे हैं। दफ्तर अभी जाते हैं, परन्तु उनको समय से पूर्व रिटायर होने की सम्मति दी जा रही है।’’
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