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उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘उनको लिये हस्पताल जो खुले हैं।’’
‘‘सरकारी प्रबन्ध पर सबको विश्वास नहीं होता। साथ ही मेरी प्याऊ के कारण हस्पताल खाली नहीं हो जायेंगे। संसार में दुःख विस्तृत है और उनके निवारण के लिये मुझ जैसी अनेकों की आवश्यकता सदा बनी रहेगी।’’
‘‘तो यह खाना-पीना कैसे चलता है?’’
‘‘यहाँ से।’’ इस समय वे डॉक्टर आनन्द की कोठी पर पहुँच गये थे। डॉक्टर आनन्द कोठी के बाहर खड़ा था। कलावती आनन्द को जानती थी। मैडिकल एसोसिएशन में वह उसको देख चुकी थी। वह यह भी जानती थी कि आनन्द हस्पताल और कॉलेज से पन्द्रह सौ वेतन पाता हैं। इस कारण जब रजनी ने उसकी ओर संकेत किया तो कलावती भौंचक्की हो देखती रह गयी।
‘‘ओह!’’ कलावती ने मोटर खड़ी की और नीचे उतर डॉक्टर को नमस्ते कह बोली, ‘‘लीजिये, अपनी लाड़ली को रखिये। ये तो जिस थाली में
काती हैं, उसी में छेद करने का यत्न कर रही हैं।’’
‘‘आनन्द ने मुस्कराते हुए कहा, ‘‘क्या हुआ है रजनी? डॉक्टर को नाराज क्यों कर दिया है?’’
‘‘मैंने जानबूझकर तो कुछ नहीं किया। केवल इस बात पर मतभेद हो गया कि ये, मेरी फीस, जो रोगी देखने की लेती हूँ, को मुनासिब नहीं मानतीं।’’
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