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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘तो तुम बहुत भारी फीस ले रही हो क्या?’’

‘‘मैं तो इसको भारी नहीं समझती। परन्तु ये कहती हैं कि इतनी फीस लेनी ठीक नहीं।’’

इस पर डॉक्टर आनन्द ने कह दिया, ‘‘डॉक्टर! ये अभी नई कॉलेज से निकली हैं। इस कारण अभी अपने को मार्किट के अनुकूल नहीं बना सकीं। मैं समझता हूँ कि माल की उपज और माँग में समय पर स्वयं सन्तुलन बन जाएगा। तब भाव भी ठीक हो जायेगा।’’

कलावती कुछ कहना चाहती थी, परन्तु आनन्द को यह कह कि उसके कॉलेज का समय हो गया है, मोटर पर जा बैठा। मोटर पर सवार होते हुए उसने कह दिया, ‘‘डॉक्टर को चाय पिलाओ। हाँ, और इनको नाराज नहीं करना चाहिये।’’

कलावती ने समझा कि डॉक्टर आनन्द अपनी पत्नी की भर्त्सना कर गया है। रजनी यह समझी कि उसका पति डॉक्टर का मजाक उड़ा गया है।

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