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उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
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रजनी ने डॉक्टर को चाय पर आमंत्रित कर दिया, ‘‘आइये डॉक्टर साहिबा! इस घर को पवित्र कीजिये।’’
‘‘फुरसत तो नहीं, परन्तु अभी आपसे कुछ बातें करनी हैं, इस कारण चाय पर शेष बातें करने का विचार है।’’
इतना कह वह उसके साथ भीतर चली गयी। रजनी ने ड्राइंग-रूम में पहुँचते ही नौकर को आवाज दे दी, ‘‘चन्दू!’’
नौकर आया तो रजनी ने कह दिया, ‘‘देखो ब्रेकफास्ट यहीं ले आओ। डॉक्टर साहिबा के लिये भी लाना है।’’
‘‘ब्रेकफास्ट में दलिया, मक्खन, दूध अण्डे और चाय थी। कलावती ने खाते हुए कहा, ‘‘देखिये मिसेज रजनी! संसार धन का मान करता है। यदि आपके पास पैसा है तो सब आपकी इज्जत करेंगे। आपको एक योग्य डॉक्टर भी मानेंगे और साथ ही आपके लड़के-लड़कियों की शिक्षा आदि का प्रबन्ध भी हो सकेगा। यदि आप ऐसी-की-ऐसी ही रहीं, तो लोग यह समझेंगे कि आप योग्य नहीं है। आपको कुछ आता-जाता नहीं। आपके गुणों को सब अवगुण मानने लगेंगे।’’
‘‘देखो डॉक्टर!’’ रजनी ने अपने मन की बात कह दी, ‘‘मेरा जीवन, मेरे गुण अथवा अवगुण सब अपने लिये हैं। दूसरे क्या समझते हैं और क्या नहीं समझते, मुझको इस बात की चिन्ता नहीं है।’’
‘‘तो आप फिर निर्धनों की सेवा किसलिए करती हैं? यह दूसरों को लाभ पहुँचाने के लिये नहीं क्या?’’
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