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उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
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राधा के विवाह का प्रबन्ध ज्ञानेन्द्रदत्त के सुपुत्र शिवकुमार के साथ होने में कठिनाई उत्पन्न हो गयी। रजनी ने विवाह तथा इन्द्र के बियाना के लिये रवाना होने से अगले दिन शर्मिष्ठादेवी, ज्ञानेन्द्र तथा शिवकुमार, रामाधार से बात करने के लिये आये थे। बात सन्तोषजनक हुई थी। शिवकुमार ने भी रामाधार को सन्तुष्ट कर दिया था।
रामाधार ने पूछा था, ‘‘बताओ शिवकुमार! अब क्या करते हो?’’
‘‘सीप के बटन बनाने का कारखाना लगा लिया है। इतनी बड़ी मशीन लगा ली है कि एक हजार दर्जन बटन नित्य बनकर तैयार होते हैं। सब प्रकार के खर्चे निकालकर एक आना दर्जन की बचत होती है।’’
रामाधार ने मोटे तौर पर गिनती कर पूछ लिया, ‘‘इसका अर्थ यह है कि तुम लगभग पन्द्रह सौ रुपये प्रति मास पैदा करते हो? इसमें से क्या और किस प्रकार व्यय करते हो?’’
शिवकुमार ने कह दिया, ‘‘अभी तो सब कमाई पिताजी को ही देता हूँ। मुझको भोजन, वस्त्र और मकान मिला हुआ है।’’
रामाधार को इससे सन्तोष हो गया। उसने कह दिया, ‘‘कोई शुभ दिन देखकर शकुन भेज दूँगा। पश्चात् विवाह के विषय में बातचीत हो जायेगी।’’
इस प्रकार बातचीत हो गयी तो उसी सायंकाल रामाधार और उसके परिवार के अन्य सदस्य अपने गाँव में चले गये।
गाँव में पहुँच राधा ने अपनी माँ से पूछ लिया, ‘‘माँ! शर्मिष्ठा मौसी किसलिये आई थीं?’’
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