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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘क्यों? किसलिये पूछ रहू हो?’’

‘‘मुझसे कुछ ऐसा प्रतीत होता है कि मेरे विषय में बात करने आई थीं।’’

देखों राधा! तुमको इस विषय में कुछ पूछना नहीं चाहिये। जो कुछ तुम्हारे पिताजी करेंगे, तुम्हारी भलाई के विचार से ही करेंगे।’’

राधा की आँखें झुक गयीं और उसका मुख बन्द हो गया। सौभाग्यवती ने उसके मुख पर देखा तो उसको असन्तोष की झलक दृष्टिगत हुई। परन्तु यह समझ कि वह इस विषय में क्या जानती है, वह चुप कर रही।

परन्तु बात हुए बिना न रही। अगले दिन शारदा ने अपनी सास को स्पष्ट रूप से कह दिया, ‘‘माताजी! राधा का विवाह उनके यहाँ नहीं होगा।’’

‘‘क्यों?’’ सौभाग्यवती ने पूछ लिया।

‘‘राधा कहती है कि उस परिवार में उसके गुण, कर्म और स्वभाव नहीं मिलेंगे।’’

‘‘कैसे जानती है वह?’’

‘‘वह कहती है कि वह जो बटन का कारखाना चलाते हैं, पचास-साठ रुपये नित्य पैदा करते हैं, दिन-रात उनकी प्रवृत्ति धन कमाने में लगी रहती होगी। उसका कहना है कि इसका मतलब यह है कि वह वेश्य-वृत्ति के लोग हैं। वह उस परिवार में खप नहीं सकेगी।’’

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