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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


इस पत्र के भेज देने के अगले दिन सौभाग्यवती ने अपने मन के संशय का वर्णन कर दिया। उसने राधा का प्रश्न और अपना उत्तर तथा पश्चात् शारदा से हुई बातचीत बताकर कह दिया, ‘‘मुझको इस विवाह में कुछ शुभ नजर नहीं आ रहा।’’

‘‘देखने में ज्ञानेन्द्रदत्त एक अच्छे पढ़े-लिखे विद्वान व्यक्ति प्रतीत होते हैं। शिवकुमार भी पहले से अधिक समझदार हो गया है। ऐसी अवस्था में मेरी बुद्धि तो यही कहती है कि इस विवाह में किसी प्रकार के अनिष्ठ की सम्भावना नहीं। साथ ही मैंने उनको सम्बन्ध की स्वीकृति दे दी थी। कल साधना को भी अपनी स्वीकृति लिखकर भेजी है। अब बताओ, मैं किस प्रकार अपने वचन से पलट सकता हूँ।’’

सौभाग्यवती इस उत्तर की पहले से ही आशा करती थी। इसका कुछ उत्तर न रखती हुई वह चुप रही।

दिन व्यतीत होते गये। अब राधा ने स्वाध्याय छोड़ जप, ध्यान और प्रार्थना में समय व्यतीत करना आरम्भ किया। इस प्रकार एक पखवाड़ा निकल गया। रामाधार साधना का अपने पत्र के उत्तर में कोई पत्र न पाने पर लखनऊ जाने का विचार लगने लगा था। उसने पंचाग देखा और शकुन के लिए मुहूर्त निकाल लिया। श्रावण सुदी सप्तमी इस कार्य के लिये शुभ दिन समझ लिया गया।

इस सप्तमी में अभी सात-आठ दिन थे कि राधा शारदा से एकान्त में मिली और बोली, ‘‘भाभी! मुझको एक उपाय सूझा।’’

‘‘क्या और किस विषय में?’’

‘‘अपने विवाह के विषय में। मैं बहन रजनी को अपने मन की बात लिख रही हूँ तुम क्या कहती हो, भाभी?’’

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