लोगों की राय

उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

410 पाठक हैं

संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


शारदा ने पत्र पढ़ा तो नमस्कार लिखकर एक पंक्ति में यह लिख दिया–‘‘रजनी बहन! तुमने मेरा पथ-प्रदर्शन किया था। मैं आशा करता हूँ कि राधा का उद्धार तुमसे हो सकेगा। तुम इतना पढ़-लिखकर यदि हम अनपढ़ों पर कृपा न करोगी तो और कौन है, जो करेगा?’’

पत्र बंद कर पिताजी को भेजने के लिये दे दिया गया। गाँव से तो डाक सप्ताह में केवल एक बार ही निकलती थी। अतः रामाधार ने किसी जान वाले के हाथ से पत्र उन्नाव स्टेशन पर डालने के लिये भेज दिया। अतः रजनी को पत्र दूसरे दिन ही मिल गया और एक सप्ताह पश्चात् दुरैया आ पहुँची।

रजनी साधना का पत्र साथ लाई थी। रामाधार को रजनी को अकेली आई देख आश्चर्य हुआ। उसने पूछ लिया, ‘‘बेटी! अकेले ही?’’

‘‘आपके निमन्त्रण पर तो आयी नहीं, काका! स्वेच्छा से आई हूँ। शारदा और राधा से मिलने को जी कर आया था। साथ ही साधना आपको पत्र का उत्तर देने का बीस दिन से यत्न कर रही थी। पत्र डालने में उसको संकोच हो रहा था। मैं उससे मिली और पत्र लिखाकर लायी हूँ।’’

‘‘ओह! तो साधना से मिली हो तुम?’’

‘‘हाँ काका! सब बताती हूँ। तनिक बैठने तो दीजिये। काका तो पायलाँगी तो कर लूँ।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book