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उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
रजनी को देख राधा की जान-में-जान आयी। शारदा और राधा, दोनों रजनी से गले मिलीं। रजनी ने माताजी को पायलाँगू की। इसके बाद वह शारदा के कमरे में जा पहुँची।
राधा समझ रही थी कि वह उसके पत्र के विषय में ही कुछ कहने आई है। इससे शारदा के कमरे में उसे जाते देख वह भी वहाँ जा पहुँची। रजनी ने उसके आते ही पूछ लिया, ‘‘क्या चाहती हो तुम?’’
‘‘मैं किसी ब्राह्मण कुमार से विवाह की इच्छुक हूँ। वे ब्राह्मण संतान तो हैं परन्तु वृत्ति से वैश्य हैं।’’
‘‘तुम्हारे भैया इन्द्र भी तो यही कुछ करने वाले हैं।’’
‘‘भाई तो किसी भी वर्ण का हो सकता है, परन्तु पति, जो होने वाली संतान का पिता होगा, वह तो सजातीय होना चाहिये।’’
‘‘एवमस्तु! परन्तु राधा! आज ऐसा लड़का ढूँढ़ना कठिन हो जायेगा!’’
‘‘तो विवाह न हो। दो रोटी खिलाने का ही तो कष्ट होगा।’’
रजनी उत्तर में इतना दृढ़ता देख स्तब्ध खड़ी रह गयी। इस पर भी वह यह आशा करती थी कि व्यवहार में इतनी दृढ़ता नहीं होगी।
रजनी ने कहा, ‘‘राधा! यहाँ तो विवाह न हो सकेगा, परन्तु जहाँ होगा वे लोग क्या होंगे, कौन कह सकता है! जन्म से ब्राह्मण मिल जाने सुगम हैं, परन्तु गुण एवं कर्म तथा स्वभाव की जो बात कर रही हो, यह प्रायः असम्भव है।’’
‘‘यदि ऐसा हुआ तो जीवन-भर की कलह रहेगी।’’
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