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उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘एक अति समझदार और सुहृदय रखने वाले। हमारी अनेकों बातें परस्पर नहीं मिलतीं। वे रात को बाहर-एक बजे तक पढ़ते रहते हैँ। मैं दस बजे से पूर्व ही बिस्तर पर लेट जाती हूँ। वे प्रायः आठ बजे उठते हैं, मैं चार बजे ही उठ पड़ती हूँ। वे मांस-मछली खाते हैं, मैं केवल अण्डे और वह भी कभी-कभी खा लेती हूं। मुझको प्रातः का भ्रमण बहुत पसन्द है। वे सायंकाल का भ्रमण पसन्द करते हैं। इसी प्रकार प्रायः वह पीले रंग के वस्त्र पहनने को कहते हैं, मुझको सफेद रंग पसन्द है।
‘‘इस पर भी, भाभी! पिछले एक मास से हमारे मतभेद हमारी हँसी के विषय बन रहे हैं। हम एक-दूसरे के विचारों को आदर की दृष्टि से देखते हैं और अपने-आपको उन विचारों के अनुकूल करने का यत्न करते रहते हैं।’’
‘‘आप किस विषय में बात किया करते हैं, जो परस्पर विवाद नहीं होता?’’
‘‘हम सब विषयों पर बातें करते हैं–घर की सजावट से लेकर राज्य के कुप्रबन्ध तक। पीछे यह समाचार था कि हिन्दुस्तान की सरकार ने महाराज कश्मीर पर अनुचित दबाव डालकर गिलगित ले लिया है। वहाँ अपनी छावनी बना सेना भेज दी है। मैं इसको अन्याय और अत्याचार मानती थी। और वे उसको उचित मानते थे। वे समझते थे कि एक राजा पर कुछ अत्याचार हुआ है परन्तु वहाँ पर छावनी बनने से पूरे हिन्दुस्तान की रक्षा का प्रबन्ध हुआ है। इससे जो हुआ उचित ही हुआ है।
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