उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
|
410 पाठक हैं |
संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
देश में अंग्रेजी राज्य और शिक्षा का कार्य अंग्रेजों के अधीन हो जाने से भारत के समाज के सब सूत्र अंग्रेजी-संस्कृति मानने वालों के हाथ में आने लग गए। इसके रोकने के लिए कई प्रयत्न किये जा रहे थे, परन्तु शिक्षा और जीवन के लिए आवश्यक साधन विदेशियों के अधिकार में जाने से समाज की गति की दिशा नहीं बदली जा सकी।
साधना और साधना की माँ पद्मा को शिवदत्त के अपने दामाद और नाती के प्रति व्यवहार पर असन्तोष था। इस पर भी वे विवाद में पड़ना नहीं चाहती थीं। वे अपने-अपने मन में यह निश्चय कर चुकी थीं कि इन्द्रनारायाण की सहायता अपने निजी साधनों से करेंगी।
मेडिकल कॉलेज में प्रवेश लेने का दिन आ गया। उस दिन साधना बहुत प्रातःकाल ही घर से जाने को तैयार हो गयी। माँ ने पूछ लिया, ‘‘साधना! आज इतनी सुबह कहाँ जा रही हो?’’
‘‘माँ! ज्ञानेन्द्रदत्त जी के घर जा रही हूँ।’’
‘‘कब तक लौटोगी?’’
‘‘सायंकाल तक ही लौट सकूँगी।’’
‘‘भृगु का कोई पत्र अथवा संदेश आया है?’’
‘‘भृगु साधना के लड़के का नाम था, जो इस समय नैनीताल में ईसाइयों के स्कूल में पढ़ रहा था। उसके पिता ने उसको वहाँ प्रविष्ट करा रखा था। उनको नवम्बर, दिसम्बर और जनवरी में अवकाश होता था। लगभग एक मास से उसका कोई समाचार नहीं आया था। साधना ने बताया, ‘‘कुछ दिन हुए, भृगु के पिता स्कूल में गये थे और उसको देख आये थे। उनका विचार है कि वह ठीक है।’’
|