उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
माँ ने तो भृगु की बात कुछ जानने के लिए ही पूछी थी। वास्तव में वह अपने मन की बात कहने अथवा न कहने के विषय में विचार कर रही थी। इसी के लिये समय प्राप्त करने के लिये भृगु की बात चला दी थी। साधना के पास समय नहीं था। वह कलाई पर बँधी घड़ी देखकर बोली, ‘‘तो माँ, मैं चलती हूँ।’’
माँ चुप रही। वह अभी तक भी निर्णय नहीं कर सकी थी कि साधना से कहे अथवा न कहे। इतने में साधना चली गयी।
इस समय माँ को विचार आया कि महादेव से अपनी बात कह दे। उसने उसके कमरे का दरवाजा जा खटखटाया। महादेव और उसकी पत्नी घर की छत पर सोते थे। प्रायः दिन निकलने पर भी महादेव की नींद पूरी नहीं होती थी और वह नीचे आ कमरे में सोया रहता था। महादेव की पत्नी इस समय तक स्नानादि से निवृत्त होकर अपने पूजा-पाठ में लग जाया करती थी।
साधना की माँ ने दरवाजा खटखटाया तो महादेव आँखें मलता हुआ बाहर निकल खड़ा हुआ। ‘क्या है, माँ?’’ उसने पूछ लिया।
‘‘बेटा! सात बज रहे हैं। सूर्य सिर पर आ गया है और तुम अभी तक आँखें ही मल रहे हो?’’
‘‘कुछ काम नहीं है न, माँ! बेकार सुबह जागने से क्या लाभ?’’
‘‘बेटा! काम है। जल्दी तैयार होकर यूनिवर्सिटी चले जाओ। इन्द्र प्रवेश पाने के लिये आ रहा है। उसको कुछ रुपये इत्यादि की आवश्यकता हो तो दे आओ।’’
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