उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘यदि आप आज्ञा देते हैं तो उनके घर चला जाऊँगा, अन्यथा मेरा मन तो यह कहता है कि अब कॉलेज और बोर्डिंग हाउस में प्रवेश पाने के पश्चात् ही उनसे मिलने जाऊँ।’’
रामाधार अपनी पत्नी का मुख देखने लगा। वह इस विषय में उसकी सम्मति भी जानना चाहता था। सौभाग्यवती ने बिना विचार किये कह दिया, ‘‘वे मेरे पिताजी हैं अवश्य, परन्तु मैं अपने लड़के को स्वाभिमानी देखता चाहती हूँ, अभिमानी नहीं। केवल अपने मान की रक्षा करने वाला।’’
‘‘माँ! मैंने यह पहले ही विचार कर लिया है। जब नानाजी को मेरे उनके घर जाने पर कष्ट होता है तो मुझको वहाँ नहीं जाना चाहिये। इस पर भी उनसे संबंध तो नहीं टूट सकता।’’
माता-पिता को समझ आ रहा था कि उनके लड़के का विचारने का ढंग ठीक है, इससे वे चुप कर रहे।
इन्द्रनारायण लखनऊ पहुँचकर रॉयल होटल में ठहर गया। भोजन कर वह कॉलेज कार्यालय में दाखिले के विषय में जानकारी प्राप्त करने जाने लगा तो उसको मामा महादेव मिल गया। उसने पूछ लिया, ‘‘इन्द्र! कब आये हो?’’
‘‘आज प्रातःकाल ही पहुँचा हूँ।’’
‘‘कहाँ ठहरे हो?’’
‘‘रॉयल होटल में।’’
‘‘दाखिला कब है?’’
‘‘परसों फार्म भरकर देना है।’’
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