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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘होटल में कब तक ठहरोगे?’’

‘‘कॉलेज में प्रवेश पा जाने के पश्चात् बोर्डिंग हाउस में सीट मिलेगी। तभी यहाँ से जा सकूँगा।’’

‘‘अच्छी बात है। माता-पिता तो ठीक हैं न?’’

‘‘जी हाँ।’’

न तो महादेव ने कहा कि वह होटल छोड़ उनके घर चला आये, न ही उसने कहा कि अपने नाना-नानी से मिलने आयेगा। इस पर इन्द्रनारायण को विस्मय तो हुआ, परन्तु आश्चर्य नहीं। इस पर भी मन से विचार निकाल वह कॉलेज कार्यालय में जा पहुँचा। वहाँ रजनी खड़ी दिखाई दी। वह फार्म लेने आयी हुई थी। दो आने का एक फार्म मिलता था। रजनी ने उसको आते देख दो फार्म खरीद लिये। वह खरीदने लगा तो रजनी ने कह दिया, ‘‘इन्द्र भैया! तुम्हारे लिये खरीद लिया है।’’

‘‘अच्छा! मैं खरीदने ही तो आया था।’’

‘‘आओ, ‘हॉल’ में बैठकर भर दें।’’

दोनों ने फॉर्म भर दिया। फार्म की दूसरी ओर फीस इत्यादि लिखी थी। वह गिनने पर पता चला कि छः मास की फीस, बोर्डिंग की फीस, प्रैक्टिकल इत्यादि कई प्रकार की फीस, सब मिलाकर पाँच सौ दस रुपये बनती है। रजनी ने जोड़ लगाया तो कह दिया, ‘‘यह तो बहुत अधिक है?’’

‘‘हाँ।’’

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