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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


‘‘हां, मेरा नाम तो सही है।’’

‘‘मैं समझ गई हूं कि उसने आपको क्यों बुलाया होगा।’’

‘‘क्या कारण हो सकता है?’’ उत्सुकता में मदन ने पूछा।

‘‘कदाचित् उसको विदित हो गया होगा कि उसके माता-पिता आपके साथ उसकी सगाई की बात कर रहे हैं। उसने आपको देखकर तनिक यह अनुमान लगाने का विचार किया होगा कि आखिर आप हैं कैसे? आपके विचार कैसे हैं? और आपके साथ जीवन सुचारु रूप में चल सकता है अथवा नहीं।’’

‘‘क्या वे आपकी बहिन हैं?’’

‘‘हां, छोटी।’’

‘‘तब तो उन्हे उत्सुकता से प्रतीक्षा करनी चाहिए। यदि मुझे पहले विदित हो जाता कि वह मेरी मंगेतर बनने वाली है तो मैं कुछ अच्छे कपड़े पहनकर चला आता।’’

‘‘वह मूर्ख नहीं है। कपड़ों से भी कहीं मनुष्य जाना जाता है? अब तो देश में धन की भरमार हो गई है और निम्न स्तर के व्यक्ति भी अच्छे वस्त्र धारण करने लगे हैं। हम तो मनुष्य का व्यक्तित्व परखना चाहते हैं।’’

‘‘और वे स्वयं कैसी हैं?’’

‘‘कैसी से आपका अभिप्राय?’’

‘‘रूप-रंग, आचार-विचार, बुद्धि आदि।’’

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