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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


फोन रख कर वह हंसती हुई मदन के समीप आई और बोली, ‘‘महेश्वरी का फोन था। वह कह रही थी कि आपको चाय पिलाऊं। उसने पत्र तो लिखवा दिया है, परन्तु अब लज्जा अनुभव कर रही है। अतः उसने कहा है कि मैं आपके विषय में विवरण जान लूं, जिससे कि उसको भली प्रकार समझा सकूं।’’

‘और यदि मैं उन्हें देखना चाहूं तो?’’

‘‘वह कहती है कि यदि आपको भी उसे देखने की लालसा है तो जैसे उसने आपको निमन्त्रित किया था, आप भी उसको उसी प्रकार निमन्त्रित कीजिये।’’

इस निमन्त्रण की बात सुनकर मदन सोचने लगा कि कदाचित् यह लड़की उसके साथ हंसी कर रही है। वह जानता था कि उसने निमन्त्रण की बात झूठी ही कही है। इस सन्देह की विद्यमानता में भी इस भेंट का अन्त वह शानदार ही करना चाहता था। वह मन में इस प्रकार विचार ही कर रहा था कि लड़की ने घंटी बजाई।

वह सुनकर बैरा आया तो लड़की ने कहा, ‘‘दो व्यक्तियो के लिए चाय, बिस्कुट, मिठाई इत्यादि ले आओ।’’

जब बैरा चला गया तो मदन कुछ गम्भीर हो इस भेंट की समाप्ति के उपाय पर विचार करने लगा। उसे गम्भीर देखकर लड़की ने पूछा, ‘‘आप निराश हो गये प्रतीत होते हैं।’’

‘‘क्या आपको अपनी होने वाली पत्नी की लज्जाशीलता का भी तो विचार करना चाहिये।’’

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