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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


बाबा ने लड़की देखी थी। इस कारण उसने कहा, ‘‘देखो मदनस्वरूप! बहुत लम्बी पत्नी ठीक नही रहती। पत्नी पति से सदा दो-तीन इंच छोटी ही होनी चाहिए। गोरा रंग दुर्बलता और नजाकत का प्रतीक है। देखा नहीं, हमारे प्राय: सभी अवतार कृष्ण वर्ण के ही होते हैं। मोटे नक्श दूसरों की कुदृष्टि से पत्नी को बचाये रखने में सहायक होते हैं। बेटा! यह बात देखने की नहीं थी। तुमको चाहिये था कि उसके शरीर को देखते कि वह कर्रा है अथवा नहीं। वह चल, कूद, भाग सकती है अथवा नहीं। वह सूझ-बूझ और बात करने में चतुर है अथवा नहीं?’’

मदन अपने बाबा को उस समस्या पर ही, जिस पर वह पिछले दो घण्टे से विचार कर रहा था, अपना मत व्यक्त करते देख ध्यान से सुनने लगा था। उसे चुप देख बाबा ने कह दिया, ‘‘बेटा! मैं पढ़ा तो दूसरी तीसरी कक्षा तक हूं, परन्तु संसार को बहुत देखा है और उसके अनुभव से ही कहता हूं कि गोरे रंग की पत्नी की अपेक्षा सुदृढ़ और स्वस्थ पत्नी अधिक आनन्ददायक होती है। फिर किसी विपत्ति के समय न तो उस पर कोई डाका डाल सकता है, न ही वह अपने रूप-लावण्य से दुर्भाग्यग्रस्त पति को छोड़ सकती है। मेरा कहा मानो, उससे एक बार फिर मिलो और इन बातों को ध्यान से देखकर उसका निरीक्षण करो। मैं तुम्हारे स्थान पर जाता तो उसको बांह से पकड़कर दबाता और देखता कि उसकी मांस-पेसियों में कुछ जान भी है अथवा नहीं?’’

मदन हंस पड़ा। वह बोला, ‘‘बाबा! मैं उसको एक-दो दिन में वेंजर में चाय के लिए निमंत्रण दे रहा हूं। तब यह भी देख लूंगा।’’

‘‘देखो मदन! आज फिर लाला फकीरचन्द मिले थे और पूछते थे कि तुमने क्या निश्चय किया है। मैंने उसको कहा है कि दो-चार दिन में तुम अन्तिम निश्चय कर लोगे।’’

इस वार्तालाप का परिणाम यह हुआ कि उसने अपने चिट्ठी को फार्म पर एक सुन्दर लेख में अंग्रेजी में पत्र लिखा–

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