उपन्यास >> प्रगतिशील प्रगतिशीलगुरुदत्त
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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।
‘‘परन्तु उससे पूर्व तो आपकी मांसपेशियों की परीक्षा करनी है। मैं चाहता हूं कि मेरी पत्नी इतनी सुदृढ़ हो कि मेरे जीवन के अन्त तक मेरा साथ दे सके।’’
‘‘यह परीक्षा तो मुझे स्पर्श किये बिना भी हो सकती है।’’
‘‘किस प्रकार?’’
‘‘कल आप हमारे कॉलेज में आ जाइये। मैं टैनिस का मैच खेल रही हूं। वहां पर आपको मेरे शरीर की दृढ़ता का ज्ञान हो जायेगा।’’
‘‘मुकाबले पर कौन है?’’
‘‘हिन्दू कॉलेज का एक विद्यार्थी है।’’
‘‘तो आप लड़के के साथ मैच खेलेंगी?’’
‘‘क्यों आपको इसमें कोई आपत्ति है?’’
‘‘मैं तो अभी आपत्ति करने की स्थिति में हूं ही नहीं।
‘‘कब होगें इस स्थिति में आप?’’
‘‘जब हमारा विवाह हो जायेगा?’’
‘‘तब तो ठीक है। कल आप आ जाइये।’’
‘‘कौन घुसने देगा मुझे वहां?’’
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