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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


‘‘आप ढाई बजे हमारी कोठी पर आ जाइयेगा। मैं आपको मोटर में ले चलूंगी। मेरे शरीर की गठन देखने का इससे अधिक सुअवसर और कब मिल सकता है।’’

मदन ने स्वीकार कर लिया।

लगभग पौन घण्टे तक वे लोग चाय पीते रहे। दोनों में दिल खोलकर वार्तालाप चलता रहा। मदन अब उतना उदास नहीं था, जितना प्रथम भेंट के अवसर पर हुआ था। वह विचार करने लगा कि एक दृष्टि से महेश्वरी अच्छी पत्नी बन सकती है।

उसी दिन वह घर गया तो उसकी दादी ने उसके नाम का एक पत्र दिया। मदन ने उत्सुकता से उसे खोला। पत्र शिक्षा मन्त्रालय से आया था। उसमें उसको लिखा गया था कि मन्त्रालय मदन को दो वर्ष की उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका की मिशिगन यूनिवर्सिटी में भेजने के लिए तैयार है। प्रवेश आगामी पन्द्रह सितम्बर को होगा। इसके लिए उसको आने-जाने का हवाई जहाज का व्यय और तीन हजार डालर प्रतिवर्ष छात्रवृत्ति मिलेगी।

पत्र के साथ ही एक कान्ट्रैक्ट फार्म भी भरकर भेजने के लिए आया हुआ था। उसे मजिस्ट्रेट से प्रमाणित करा कर उसके साथ ही अपने पासपोर्ट साइज की सात फोटो भेजने के लिए कहा गया था।

इस समाचार से मदनस्वरूप प्रसन्नता के मारे उछल पड़ा। इस उमंग में उसके मुख से अकस्मात् ही निकल गया ‘हुर्रे’। दादी ने उसको इस प्रकार प्रसन्नता से नाचते हुए देख, पूछ लिया,‘‘मदन! क्या है! क्या नौकरी लग गई है?’’

‘‘नहीं अम्मा! नौकरी से भी अधिक। मुझे अमेरिका में पढने के लिए वजीफा मिल गया है।’’

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