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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


‘‘विद ए लविंग किस।’’

‘‘श...श...।’’ महेश्वरी ने उसे चुप करा दिया।’’

बैरा चाय ले आया था। जब दोनों के बीच में चाय लगाकर बैरा चला गया तो महेश्वरी ने कहा, ‘‘यह तो समय से पूर्व है।’’

‘‘मैं उसको प्रगतिशील मानता हूं।’’

‘‘किन्तु मेरी अध्यापिका ने तो इसे प्रतिगामिता बताया है।’’

‘‘कौन है तुम्हारी अध्यापिका? वह अवश्य ही कोई साठ वर्ष की बुढ़िया होगी।’’

‘‘जी नहीं। वह मुझसे केवल दो वर्ष ही बड़ी है। वह दिल्ली की एक प्रख्यात महिला है।’’

‘‘सत्य? कौन है वह?’’

‘‘अपने विवाह के समय उसके दर्शन कराऊंगी। उससे बातें भी कराऊंगी।’’

‘‘कहीं वह सिद्धेश्वरी देवी तो नहीं हैं?’’ मदन ने हंसते हुए कहा।

‘‘जी नहीं। सिद्धेश्वरी तो आपके सम्मुख ही विराजमान है। वैंजर तथा मैच में आपने महेश्वरी को देखा था। पर यहां इस समय तो उस दिन वाली सिद्धश्वरी ही है।’’

मदन ने बात बदल दी। उसने कहा, ‘‘मैंने दोपहर के समय आते ही बताया था कि आज मैं एक अत्यावश्यक कार्य में व्यस्त था, परन्तु तुमने उसके विषय में पूछा तक नहीं।’’

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