उपन्यास >> प्रगतिशील प्रगतिशीलगुरुदत्त
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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।
‘‘यह पूछने का अधिकार अभी मुझे प्राप्त नहीं है।’’
‘‘वह कब प्राप्त होगा?’’
महेश्वरी ने टेढ़ी आंख से देख मुस्कुराते हुए कहा, ‘‘आफ्टर दैट लौंग लविंग किस।’’
‘‘यही तो कह रहा था।’’
‘‘उसके लिए मैं पिताजी से कहूंगी कि वे आपको तथा आपके परिजनों को यहां आने का निमन्त्रण दें। तदनन्तर आपके बाबा मुझे अपने घर चलने का निमन्त्रण देंगे। तब उसके लिए समय आयेगा।’’
मदन ने निश्चय कर लिया था कि महेश्वरी को अपनी पूर्ण बात बता देनी चाहिये। उसने कहा, ‘‘समझता हूं कि मेरी व्यस्तता का ज्ञान तुमको हो ही जाना चाहिये। जिससे की उक्त निमन्त्रणों के विषय में निश्चय किया जा सके।
‘‘मैं अमेरिका जा रहा हूं। वहां मुझे मिशिगन यूनिवर्सिटी में सीट मिल रही है।’’
महेश्वरी के हाथ का प्याला कांपने लगा था। इस पर उसने प्याला तिपाई पर रख दिया और बोली, ‘‘यह तो आपने मेरी पूर्ण योजना पर बम्ब गिरा दिया है।’’
‘‘सत्य।’’
‘‘हां! परन्तु भाग्य के साथ कौन झगड़ा कर सकता है! कब जा रहें है?’’
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