उपन्यास >> प्रगतिशील प्रगतिशीलगुरुदत्त
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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।
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दोनों की सगाई हो गई। परन्तु विवाह के विषय में यह निश्चय हुआ कि वह मदन के अमेरिका से लौटने पर ही होगा। सितम्बर की पहली तारीख को मदन पालम हवाई अड्डे से अमेरिका के लिए जाने वाला था। इकत्तीस अगस्त को उसने महेश्वरी को अपने घर चाय पर बुलाया। वह अपने जाने की पूरी तैयारी कर चुका था।
महेश्वरी उससे मिलने के लिए आई। मदन अपनी दोनों भुजायें पसारे उससे आलिंगन करने के लिए तैयार खड़ा था परन्तु महेश्वरी अकेली नहीं थी। उसके साथ उसकी एक सहेली गुरनाम कौर भी आई थी। उसको महेश्वरी के साथ आती देख, मदन की प्रसारित भुजायें नत हो गईं। अपने मन के भावों को नियन्त्रित करने में लीन वह उसका स्वागत करना भी भूल गया।
दोनों स्वयं ही बिना किसी संकेत के कुर्सियों पर बैठ गईं और महेश्वरी ने बात आरम्भ करते हुए कहा, ‘‘एक दिन मैंने आप को अपनी अध्यापिका से भेंट कराने का वचन दिया था। इस कार्य के लिए आज का दिन उपयुक्त समझकर मैं इनको अपने साथ ले आई हूं।’’
फिर उसने अपनी साथिन का परिचय कराते हुए कहा, ‘‘आपका नाम है श्रीमती गुरनाम कौर। मैं इनसे सौशियोलौजी पढ़ती रहती हूं।’’
‘‘परन्तु ये तो अभी बहुत ही अल्प की आयु हैं।’’
‘‘हां मैंने आपको बताया तो था कि ये मुझसे केवल दो वर्ष ही बड़ी हैं। परन्तु ‘अक्ल बड़ी या भैंस’ वाली कहावत है। मैंने इनकी सम्मुख आपको संशय का वर्णन किया था, अब आप इनके स्पष्टीकरण पूछ सकते हैं।’’
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