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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


सब उठ खड़े हुए। मदन भी उठकर कमरा देखने के लिए तैयार हो गया। सब बाहर निकल आये। मकान की निचली मंजिल पर डॉक्टर का चिकित्सालय था। इसमें कई कमरे थे। एक पैथोलोजिक-रूम था, एक परीक्षण-कक्ष था, एक प्रतीक्षालय था, एक डॉक्टर के स्वयं बैठने का कमरा था। एक कमरा लेडी डॉक्टर के लिए था जो उसके यहां नौकरी करती थी। मकान की पहेली मंजिल पर खाने के कमरे के अतिरिक्त चार कमरे सोने के लिए थे और एक बहुत बड़ा हॉल था। प्रत्येक कमरे के साथ स्नानागार और शौच थे। एक विशेष कमरा था जिसमें डॉक्टर ने अपना पुस्तकालय बनाया हुआ था। इन चार कमरों में एक में डॉक्टर और उसकी पत्नी सोते थे और एक में लड़की। तीसरा और चौथा कमरा खाली था। मिसेज साहनी ने एक कमरा जो मिस साहनी के कमरे के बगल में था और बिल्कुल वैसा ही था, मदन को दिखा दिया। यह कमरा सजा हुआ कम था, फिर भी आवश्यकता की सब वस्तुयें उसमें विद्यमान थीं।

मदन को कमरा तो पसन्द आ गया किन्तु उसने कहा, ‘‘मम्मी! मैं डर रहा हूं कि कहीं मेरे यहां आ जाने से आपको को कोई कष्ट न हो?’’

‘‘नहीं-नहीं, हमें कोई कष्ट नहीं होगा। क्यों लैसली! तुम क्या कहती हो?’’

‘‘मुझे भी इसमें कष्ट का कोई कारण प्रतीत नहीं होता।’’

‘‘तो ठीक है। मदन! अब तुम जिस समय भी चाहो, आ सकते हो।’’

‘‘मम्मी! अभी क्यों नहीं?’’

‘‘हां, अभी आ जाओ।’’

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