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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


डॉक्टर साहनी और उसकी पत्नी नीला अपने बैडरूम में सोने से पूर्व अपने-अपने पलंग पर बैठे मदन के विषय में चर्चा कर रहे थे। नीला ने कहा था–‘‘मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि लैसली और मदन का विवाह होकर रहेगा।’’

इसी बात पर यह वार्तालाप आरम्भ हो गया था।

नीला ने अपना पूर्व इतिहास अपने पति को स्मरण कराते हुए कहा, ‘‘मैंने मैट्रिक की परीक्षा दी थी और आप डॉक्टरी पास करके आये थे। आप फर्स्टक्लास सूट पहने हुए थे और कोट के बटन में आपने लाल गुलाब का फूल लगा रखा था। प्रातः समीर की भांति आप आये तो मैं आपका मुख देखती रह गई। और जब माताजी कमरे के बाहर आपके लिए दूध मिठाई लेने के लिए गई तो मुझे अपने मुख की ओर निहारते देख आप ने पूछा, ‘क्या देख रही हो नीला?’

‘‘मैं कहा था, ‘आपको।’

‘किसलिए?’

‘‘जी करता है कि आपका मुख चूम लूं।’’

‘‘आप हंसे और बोले, ‘तो देख क्या रही हो। बूआ गई हैं। जल्दी करो, वे आ गई तो फिर तुम्हारी इच्छा पूर्ण होनी सम्भव नहीं।’

‘‘मैंने लपककर आपका मुख चूम लिया था।

‘‘इसके कई मास उपरान्त मैं आपके घर गई हुई थी। स्नेह भाभी बीमार रहने लगी थीं। मैं अपने स्वभाव-वश आपका मुख देख रही थी तो भाभी ने पूछा, ‘नीला! क्या देख रही हो?’

‘भैया का मुख।’ मेरा कहना था।

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