लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )

प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :286
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8588

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

93 पाठक हैं

इन कहानियों में आदर्श को यथार्थ से मिलाने की चेष्टा की गई है


मगर राजा साहब उनकी बातों में न आये। आखिर मजबूर होकर बादशाह ने ज्यादा न दबाया। दम-भर बाद रोशनुद्दौला को सजा देने का प्रश्न उठा, तब दोनों आदमियों में इतना मतभेद हुआ कि वाद-विवाद की नौबत आ गई। बादशाह आग्रह करते थे कि इसे कुत्तों से नुचवा दिया जाय। राजा साहब इस बात पर अड़े हुए थे कि इसे जान से न मारा जाय, केवल नजरबंद कर दिया जाय। अंत में बादशाह ने क्रुद्ध होकर कहा–यह एक दिन आपको जरूर दगा देगा!

राजा–इस खौफ से मैं उसकी जान न लूँगा।

बादशाह–तो जनाब, आप चाहे इसे मुआफ कर दें, मैं कभी मुआफ नहीं कर सकता।

राजा–आपने तो इसे मेरे सिपुर्द कर दिया है। दी हुई चीज आप वापस कैसे लेंगे?

बादशाह ने कहा–तुमने मेरे निकलने का कहीं रास्ता ही नहीं रखा।

रोशनद्दौला की जान बच गई। वजारत का पद कप्तान साहब को मिला। मगर सबसे विचित्र बात यह थी कि रेजीडेंट ने इस षड्यंत्र से पूर्ण अनभिज्ञता प्रकट की, और साफ लिख दिया कि बादशाह सलामत अपने अँगरेज-मुसाहबों को चाहें जो सजा दें, मुझे कोई आपत्ति न होगी। मैं उन्हें पाता, तो स्वयं बादशाह की खिदमत में भेज देता, लेकिन पाँचों महानुभावों में से एक का भी पता न चला। शायद वे सब-के-सब रातों-रात कलकत्ते भाग गए थे। इतिहास में उक्त घटना का कहीं उल्लेख नहीं किया गया, लेकिन किंवदंतियाँ, जो इतिहास से अधिक विश्वसनीय हैं, उसकी सत्यता की साक्षी हैं।

0 0 0

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book