सदाबहार >> प्रेमाश्रम (उपन्यास) प्रेमाश्रम (उपन्यास)प्रेमचन्द
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‘प्रेमाश्रम’ भारत के तेज और गहरे होते हुए राष्ट्रीय संघर्षों की पृष्ठभूमि में लिखा गया उपन्यास है
ज्ञान– अमानत पर तो कुछ न कुछ ब्याज मिलता है।
गायत्री– अच्छी बात है, पर इस समय उसके लिए कलकत्ता के किसी कारखाने से एक छोटा-सा टंडम मँगा दीजिए और मेरा टाँघन जो ताँगे में चलता है बरसात भेज दीजिए। छोटी लड़की के लिए हार बनवा दीजिए। जो ५०० रुपये से कम का न हो।
ज्ञानशंकर यहाँ से चले तो पैर धरती पर न पड़ते थे। बँगले की अभिलाषा उन्हें चिरकाल से थी। वह समझते थे, यह मेरे जीवन का मधुर स्वप्न ही रहेगी, लेकिन सौभाग्य की एक दृष्टि ने यह चिरसंचित अभिलाषा पूर्ण कर दी।
आरम्भ उतसाहवर्द्धक हुआ, देखें अन्त क्या होता है?
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आय में वृद्धि और व्यय में कमी, यह ज्ञानशंकर के सुप्रबन्ध का फल था। यद्यपि गायत्री भी सदैव किफायत कर निगाह रखती थी, पर उनकी किफायत अशर्फियों की लूट और कोयलों पर मोहर को चरितार्थ करती थी। ज्ञानशंकर ने सारी व्यवस्था ही पलट दी। कारिन्दों की बेपरवाही से इलाके में जमीन के बड़े-बड़े टुकड़े परती पड़े थे। हजारों बीघे की सीर होती थी, पर अनाज का कहीं पता न चलता था, सब का सब सिपाही प्यादों की खुराक में उठ जाता था। पटवारी की साजिश और कारिन्दों की बेईमानी से कितनी ही उर्वरा भूमि ऊसर दिखाई जाती थी। सीर की सारी आमदनी राज्यधिकारियों के आदर-सत्कार्य के लिए भेंट उन्हें बड़ा गोल-माल दिखाई दिया। बहुत दिनों से इजाफा लगान न हुआ था। खेतों की जमाबन्दी भी किसी निश्चित नियत के अधीन न थी। हजारों रुपये प्रति वर्ष बट्टा खाते चले जाते थे। बड़े-बड़े टुकड़े मौरूसी हो गये थे। ज्ञानशंकर ने इन सभी मामलों की छानबीन शुरू की। सारे इलाके में हलचल मच गयी। गायत्री के पास शिकायतें पहुँचने लगीं और यद्यपि गायत्री असामियों के साथ नर्मी का बर्ताव करना पसन्द करती थी, जब ज्ञानशंकर ने हिसाब का ब्यौरा समझाया तो उसकी आँखें खुल गयीं। हजार से ज्यादा ऐसे असामी थे, जिन पर तत्काल बेदखली न दायर की जाती तो वे सदा के लिए ज़मींदार के काबू से बाहर हो जाते और २० हजार सालाना की क्षति होती। इजाफा लगान से आमदनी सवाई हुई जाती है। जिस रियासत से दो लाख सलाना भी न निकला था, उससे बिना अड़चन के तीन लाख की निकासी होती नजर आती थी। ऐसी दशा में गायत्री अपने सुयोग्य मैनेजर से क्यों न सहमत होती?
तीन वर्ष तक सारी रियासत में हाहाकार मचा रहा। ज्ञानशंकर को नाना प्रकार के प्रलोभन दिये गये, यहाँ तक कि मार डालने की धमकियाँ भी दी गयीं, पर वह अपने कर्मपथ से न हटे। यदि वह चाहते तो इन परिस्थितियों को अपरिमित धन संचय का साधन बना सकते थे, पर सम्मान और अधिकार ने अब उन्हें क्षुद्रताओं से निवृत्त कर दिया था।
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