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प्रेमाश्रम (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :896
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8589

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‘प्रेमाश्रम’ भारत के तेज और गहरे होते हुए राष्ट्रीय संघर्षों की पृष्ठभूमि में लिखा गया उपन्यास है


किन्तु किसी ने उसकी धमकी पर ध्यान न दिया। थोड़ी देर में सब जानवर बीच में घिर गये। और कन्धे से कन्धा मिलाये, कनखियों से ताकते, तीनों चपरासियों के साथ धीरे-धीरे चले। बिलासी एक संदिग्ध दशा में मूर्तिवत खड़ी थी। जब जानवर कोई बीस कदम निकल गये तब वह उन्मत्त की भांति दौड़ी और हाँपते हुए बोली, मैं कहती हूँ इन्हें छोड़ दे, नहीं तो ठीक न होगा।

फैजू– हट जा रास्ते से। कुछ शामत तो नहीं आयी है।

बिलासी रास्ते में खड़ी हो गयी और बोला, ले कैसे जाओगे? दिल्लगी है?

गौस खाँ– न हटे तो इसकी मरम्मत कर दो।

बिलासी– कह देती हूँ, इन जानवरों के पीछे लोहू की नदी बह जायेगी। माथे गिर जायेंगे।

फैजू– हटती है या नहीं चुड़ैल?

बिलासी– तू हट जा दाढ़ीजार।

इतना उसके मुँह से निकलना था कि फैजू ने आगे बढ़कर बिलासी की गर्दन पकड़ी और उसे इतने जोर का झोंका दिया कि वह दो कदम पर जा गिरी उसकी आँखें तिलमिला गयी, मूर्छा-सी आ गयी। एक क्षण वह वहीं अचेत पड़ी रही, तब उठी और लँगडाती हुई उन पुरुषों से अपनी अपमान कथा कहने चली जो उसके मान-मर्यादा के रक्षक थे।

मनोहर और बलराज दोनों एक दूसरे गाँव में धान काटने गये थे। वह यहाँ से कोस भर पड़ता था। लखनपुर में धान के खेत न थे। इसलिए सभी लोग प्रायः उसी गाँव में धान बोते थे। बिलासी धान के मेड़ों पर चली जाती थी। कभी पैर इधर फिसलते, कभी उधर वह ऐसी उद्विग्न हो रही थी कि किसी प्रकार उड़कर वहाँ पहुँच जाऊँ। पर घुटनियों में चोट आ गयी थी। इसी लिए विवश थी। उसके रोम-रोम से अग्नि की ज्वाला निकल रही थी। अंग-अंग में यही ध्वनि निकलती थी– इनकी इतनी मजाल ।

उसे इस समय परिणाम और फल की लेशमात्र भी चिन्ता न थी। कौन मरेगा? किसका घर मिट्टी में मिलेगा? यह बातें उसके ध्यान में न भी आती थीं। वह संकल्प, विकल्प के बन्धन से मुक्त हो गयी थी।

लेकिन जब उस गाँव के समीप पहुँची और धान से लहराते हुए खेत दिखायी देने लगे तो पहली बार उसके मन में यह प्रश्न उठा, कि इसका फल क्या होगा? बलराज एक ही क्रोधी है, मनोहर उससे भी एक अंगुल आगे। मेरा रोना सुनते ही दोनों भभक उठेंगे। जान पर खेल जायेंगे, तब? किन्तु आहत हृदय ने उत्तर दिया; क्या हानि है? लड़कों के लिए आदमी क्या झींकता है। पति के लिये क्यों रोता है? इसी दिन के लिए तो? इस कलमुँह फैजू का मान मरदन तो हो जायेगा! गौस खाँ का घमंड तो चूर-चूर हो जायेगा।

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