सदाबहार >> रंगभूमि (उपन्यास) रंगभूमि (उपन्यास)प्रेमचन्द
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नौकरशाही तथा पूँजीवाद के साथ जनसंघर्ष का ताण्डव; सत्य, निष्ठा और अहिंसा के प्रति आग्रह, ग्रामीण जीवन में उपस्थित मद्यपान तथा स्त्री दुर्दशा का भयावह चित्र यहाँ अंकित है
जगधर संभलकर उठ बैठा और चुपके से सरक गया। भैरों भी उसके पीछे चलता हुआ। उनके जाने के बाद यहां खूब कहकहे उड़े, और सूरदास की खूब पीठ ठोंकी गई। सबको आश्चर्य हो रहा था कि सूरदास-जैसा दुर्बल आदमी जगधर-जैसे मोटे-ताजे आदमी को कैसे दबा बैठा। ठाकुरदीन यंत्र-मंत्र का कायल था। बोला–सूरे को किसी देवता का इष्ट है। हमें भी बताओ सूरे, कौन-सा मंत्र जगाया था?
सूरदास–सौ मंत्रों का एक मंत्र हिम्मत है। ये रुपए जगधर को दे देना, नहीं तो मेरी कुशल नहीं है !
ठाकुरदीन–रुपए क्यों दे दूं, कोई लूट है? तुमने बाजी मारी है, तुमको मिलेंगे।
नायकराम–अच्छा सूरदास, ईमान से बता दो, सुभागी को किस मंत्र से बस में किया? अब तो यहां सब लोग अपने ही हैं, कोई दूसरा नहीं है। मैं भी कहीं कंपा लगाऊं।
सूरदास ने करुण स्वर में कहा–पंडाजी, अगर तुम भी मुझसे ऐसी बातें करोगे, तो मैं मुंह में कालिख लगाकर कहीं निकल जाऊंगा। मैं पराई स्त्री को अपनी माता, बेटी, बहन समझता हूं। जिस दिन मेरा मन इतना चंचल हो जाएगा, तुम मुझे जीता न देखोगे। यह कहकर सूरदास फूट-फूटकर रोने लगा। जरा देर में आवाज संभालकर बोला–भैरों रोज उसे मारता है। बिचारी कभी-कभी मेरे पास आकर बैठ जाती है। मेरा अपराध इतना ही है कि मैं उसे दुत्कार नहीं देता। इसके लिए चाहे कोई बदनाम करे, चाहे जो इल्जाम लगाए, मेरा जो धरम था, वह मैंने किया। बदनामी के डर से जो आदमी धरम से मुंह फेर ले, वह आदमी नहीं है।
बजरंगी–तुम्हें हट जाना था, उसकी औरत थी, मारता चाहे पीटता, तुझे मतलब?
सूरदास–भैया, आंखों देखकर रहा नहीं जाता, यह तो संसार का व्यवहार है; पर इतनी-सी बात पर कोई बड़ा कलंक तो नहीं लगा देता। मैं तुमसे सच कहता हूं, आज मुझे जितना दुःख हो रहा है, उतना दादा के मरने पर भी न हुआ था मैं अपाहिज, दूसरों के टुकड़े खानेवाला और मुझ पर यह कलंक ! (रोने लगा)
नायकराम–तो रोते क्यों हो भले आदमी, अंधे हो तो क्या मर्द नहीं हो? मुझे तो कोई यह कलंक लगाता, तो और खुश होता। ये हजारों आदमी जो तड़के गंगा-स्नान करने जाते हैं, वहां नजरबाजी के सिवा और क्या करते है ! मंदिरों में इसके सिवा और क्या होता है ! मेले-ठेलों में भी यही बहार रहती है। यही तो मरदों के काम हैं। अब सरकार के राज में लाठी-तलवार का तो कहीं नाम नहीं रहा, सारी मनुसाई इसी नजरबाजी में रह गई है। इसकी क्या चिंता ! चलो भगवान का भजन हो, यह सब दुःख दूर हो जाएगा।
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