उपन्यास >> सेवासदन (उपन्यास) सेवासदन (उपन्यास)प्रेमचन्द
|
361 पाठक हैं |
यह उपन्यास घनघोर दानवता के बीच कहीं मानवता का अनुसंधान करता है
तेगअली ने मार्मिक भाव से कहा– उन पर एतमाद करना रेत पर दीवार बनाना है। आपको मालूम नहीं, वहां क्या चालें चली जा रही हैं। अजब नहीं है कि ऐन वक्त पर धोखा दें।
पद्मसिंह– मुझे तो ऐसी आशा नहीं है।
तेगअली– यह आपकी शराफत है। यहां इस वक्त उर्दू-हिन्दी का झगड़ा गोकशी का मसला, जुदागाना इंतखाब, सूद का मुआबिजा, कानून इन सबों से मजहबी तास्सुब के भड़काने में मदद ली जा रही है।
प्रभाकर राव– सेठ बलभद्रदास न आएंगे क्या, किसी तरह उन्हीं को समझाना चाहिए।
कुंवर साहब– मैंने उन्हें निमंत्रण ही नहीं दिया, क्योंकि मैं जानता था कि वह कदापि न आएंगे। वह मतभेद को वैमनस्य समझते हैं। हमारे प्रायः सभी नेताओं का यही हाल है। यही एक विषय है, जिसमें उनकी सजीवता प्रकट होती है। आपका उनसे जरा भी मतभेद हुआ और वह आपके जानी दुश्मन हो गए, आपसे बोलना तो दूर रहा, आपकी सूरत तक न देखेंगे, बल्कि अवसर पाएंगे, तो अधिकारियों से आपकी शिकायत करेंगे। अपने मित्रों की मंडली में आपके आचार-विचार, रीति-व्यवहार की आलोचना करेंगे। आप ब्राह्मण हैं तो आपको भिक्षुक कहेंगे, क्षत्रिय हैं तो आपको उजड्ड-गंवार कहेंगे। वैश्य हैं, तो आपको बनिए, डंडी-तौल की पदवी मिलेगी और शूद्र हैं तब तो आप बने-बनाए चांडाल हैं ही। आप अगर गाने में प्रेम रखते हैं, तो आप दुराचारी हैं, आप सत्संगी हैं तो आपको तुरंत ‘बछिया के ताऊ’ की उपाधि मिल जाएगी। यहां तक कि आपकी माता और स्त्री पर भी निंदास्पद आक्षेप किए जाएंगे। हमारे यहां मतभेद महापाप है और उसका कोई प्रायश्चित नहीं। अहा! वह देखिए, डॉक्टर श्यामाचरण की मोटर आ गई।
डॉक्टर श्यामाचरण मोटर से उतरे और उपस्थित सज्जनों की ओर देखते हुए बोले - I am sorry. I was late.
कुंवर साहब ने उनका स्वागत किया औरों ने भी हाथ मिलाया और डॉक्टर साहब एक कुर्सी पर बैठकर बोले– When is the performance going to begin!
कुंवर साहब– डॉक्टर साहब, आप भूलते हैं, यह काले आदमियों का समाज है।
डॉक्टर साहब ने हंसकर कहा– मुआफ कीजिएगा, मुझे याद न रहा कि आपके यहां मलेच्छों की भाषा बोलना मना है।
कुंवर साहब– लेकिन देवताओं के समाज में तो आप कभी ऐसी भूल नहीं करते।
डॉक्टर– तो महाराज, उसका कुछ प्रायश्चित्त करा लीजिए।
|