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सेवासदन (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :535
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8632

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यह उपन्यास घनघोर दानवता के बीच कहीं मानवता का अनुसंधान करता है


शान्ता समझ रही थी कि दोनों हमारी विवाह-प्रथा पर आक्षेप कर रही हैं। थोड़ी देर के बाद उसने पूछा– मैंने सुना है, आप लोग अपना पति खुद चुन लेती हैं?

‘हां, हम इस विषय में स्वतंत्र हैं।’

‘आप अपने को मां-बाप से बुद्धिमान समझती हैं?’

‘हमारे मां-बाप क्या जान सकते हैं कि हमको उनके पसंद किए हुए पुरुषों से प्रेम होगा या नहीं?’

‘तो आप लोग विवाह में प्रेम मुख्य समझती हैं?’

‘हां, और क्या? विवाह प्रेम का बंधन है।’

‘हम विवाह को धर्म का बंधन समझती हैं। हमारा प्रेम धर्म के पीछे चलता है।’

नौ बजे गाड़ी मुगलसराय पहुंच गई। विट्ठलदास ने आकर शान्ता को उतार और दूर हटकर प्लेटफार्म पर ही कालीन बिछाकर उसे बिठा दिया। बनारस की गाड़ी खुलने में आध घंटे की देर थी।

शान्ता ने देखा कि उसके देशवासी सिर पर बड़े-बड़े गट्ठर लादे एक संकरे द्वार पर खड़े हैं और बाहर निकलने के लिए एक-दूसरे पर गिरे पड़ते हैं, एक दूसरे तंग दरवाजे पर हजारों आदमी खड़े अंदर के लिए धक्कमधक्का कर रहे हैं, लेकिन दूसरी ओर एक चौड़े दरवाजे से अंग्रेज लोग छड़ी घुमाते कुत्तों को लिए आते-जाते हैं। कोई उन्हें नहीं रोकता, कोई उनसे नहीं बोलता।

इतने में पंडित पद्मसिंह उसके निकट आए बोले– शान्ता, मैं तुम्हारा धर्मपिता पद्मसिंह हूं।

शान्ता खड़ी हो गई और दोनों हाथ जोड़कर उन्हें प्रणाम किया।

पद्मसिंह ने कहा– तुम्हें आश्चर्य हो रहा होगा कि हम लोग चुनार क्यों नहीं उतरे? इसका कारण यही है कि अभी तक मैंने भाई साहब से तुम्हारे विषय में कुछ नहीं पूछा। तुम्हारा पत्र मुझे मिला, तो मैं ऐसा घबड़ा गया कि मुझे तुम्हें बुलाना परमावश्यक जान पड़ा। भाई साहब से कुछ कहने-सुनने का अवकाश ही नहीं मिला। इसीलिए अभी कुछ दिनों तक बनारस रहना पड़ेगा। मैंने यह उचित समझा है कि तुम्हें उसी आश्रम में ठहराऊं, जहां आजकल तुम्हारी बहन सुमनबाई रहती हैं। सुमन के साथ रहने से तुम्हें किसी प्रकार का कष्ट न होगा। तुमने सुमन के विषय में जो कलंकित बातें सुनी हैं, उन्हें हृदय से निकाल डालो। अब वह देवी है। उसका जीवन सर्वथा निर्दोष और उज्ज्वल हो गया है। यदि ऐसा न होता, तो मैं अपनी धर्मपुत्री को उसके साथ रखने पर कभी तैयार न होता। महीने-दो-महीने में, मैं भैया को ठीक कर लूंगा। यदि तुम्हें इस प्रबंध में कुछ आपत्ति हो, तो साफ-साफ कह दो कि कोई और प्रबंध करूं?

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