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सेवासदन (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :535
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8632

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यह उपन्यास घनघोर दानवता के बीच कहीं मानवता का अनुसंधान करता है

४३

शान्ता को आश्रम में आए एक मास से ऊपर हो गया, लेकिन पद्मसिंह ने अभी तक अपने घर में किसी से इसकी चर्चा नहीं की। कभी सोचते, भैया को पत्र लिखूं, कभी सोचते, चलकर उनसे कहूं, कभी विट्ठलदास को भेजने का विचार करते, लेकिन कुछ निश्चय न कर सकते थे।

इधर उनके मित्रगण वेश्याओं के प्रस्तावों को बोर्ड में पेश करने के लिए जल्दी मचा रहे थे। उन्हें उसकी सफलता की पूरी आशा की। मालूम नहीं, विलंब होने से फिर कोई बाधा उपस्थित हो जाए। पद्मसिंह उसे टालते आए थे। यहां तक कि मई का महीना आ गया। विट्ठलदास और रमेशदत्त ने ऐसा तंग किया कि उन्हें विवश होकर बोर्ड में नियमानुसार अपने प्रस्ताव की सूचना देनी पड़ी। दिन और समय निर्दिष्ट हो गया।

ज्यों-ज्यों दिन निकट आता था, पद्मसिंह का चित्त अशांत होता जाता था। उन्हें अनुभव होता था कि केवल इस प्रस्ताव के स्वीकृत हो जाने से ही उद्देश्य पूरा न होगा। इसे कार्यरूप में लाने के लिए शहर के सभी बड़े आदमियों की सहानुभूति और सहकारिता की आवश्यकता है, इसलिए वह हाजी हाशिम को किसी-न-किसी तरह अपने पक्ष में लाना चाहते थे। हाजी साहब का शहर में इतना दबाव था कि वेश्याएं भी उनके आदेश के विरुद्ध न जा सकती थीं। अंत में हाजी साहब भी पिघल गए। उन्हें पद्मसिंह की नेकनीयती पर विश्वास हो गया।

आज बोर्ड में यह प्रस्ताव पेश होगा। म्युनिसिपल बोर्ड के अहाते में बड़ी भीड़भाड़ है। वेश्याओं ने अपने दलबल सहित बोर्ड पर आक्रमण किया है। देखें, बोर्ड की क्या गति होती है।

बोर्ड की कार्यवाही आरंभ हो गई। सभी मेंबर उपस्थित हैं। डॉक्टर श्यामाचरण ने पहाड़ पर जाना मुल्तवी कर दिया है, मुंशी अबुलवफा को तो आज रात-भर नींद ही नहीं आई। वह कभी भीतर जाते हैं, कभी बाहर आते हैं। आज उनके परिश्रम और उत्साह की सीमा नहीं है।

पद्मसिंह ने अपना प्रस्ताव उपस्थित किया और तुले हुए शब्दों में उसकी पुष्टि की। यह तीन भागों में विभक्त थाः
१. वेश्याओं को शहर के मुख्य स्थान से हटाकर बस्ती से दूर रखा जाए,

२. उन्हें शहर के मुख्य सैर करने के स्थानों और पार्कों में आने का निषेध किया जाए,

३. वेश्याओं का नाच कराने के लिए एक भारी टैक्स लगाया जाए, और ऐसे जलसे किसी हालत में खुले स्थानों में न हों।

प्रोफेसर रमेशदत्त ने उसका समर्थन किया।

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