उपन्यास >> सेवासदन (उपन्यास) सेवासदन (उपन्यास)प्रेमचन्द
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यह उपन्यास घनघोर दानवता के बीच कहीं मानवता का अनुसंधान करता है
सैयद तेगअली ने फर्माया-तरमीम से असल तजवीज की मंशा फीत हो जाने का खौफ है। आप गोया एक मकान का सदर दरवाजा बंद करके पीछे की तरफ दूसरा दरवाजा बना रहे हैं। यह गैरमुमकिन है कि वे औरतें, जो अब तक ऐश और बेतकल्लुफी की जिंदगी बसर करती थीं, मेहनत और मजदूरी की जिंदगी बसर करने पर राजी हो जाएं। वह इस तरमीम से नाजायज फायदा उठाएंगी, कोई अपने बालाखाने पर सिंगार की एक मशीन रखकर अपना बचाव कर लेंगी, कोई मोजे की मशीन रख लेंगी, कोई पान की दूकान खोल लेंगी, कोई अपने बालाखाने पर सेब और अनार के खोमचे सजा देंगी। नकली निकाह और फरजी शादियों का बाजार गर्म हो जाएगा और इस परदे की आड़ में पहले से भी ज्यादा हरामकारी होने लगेगी। इस तरमीम को मंजूर करना इंसानी खसलत से बेइल्मी का इजहार करना है।
हकीम शोहरत खां ने कहा– मुझे सैयद तेगअली के खयालात बेजा मालूम होते हैं। पहले इन खबीस हस्तियों को शहरबदर कर देना चाहिए। इसके बाद अगर वह जाएज तरीके पर जिंदगी बसर करना चाहें, तो काफी इत्मीनान के बाद उन्हें इंतहान शहर में आकर आबाद होने की इजाजत देनी चाहिए। शहर का दरवाजा बंद नहीं है जो चाहे यहां आबाद हो सकता है। मुझे काबिले यकीन है कि तरमीम से इस तजवीज का मकसद गायब हो जाएगा।
शरीफहसन वकील बोले– इसमें कोई शक नहीं कि पंडित पद्मसिंह एक बहुत ही नेक और रहमी बुजुर्ग हैं, लेकिन इस तरमीम को कबूल करके उन्होंने असल मकसद पर निगाह रखने के बजाए हरदिल अजीज बनने की कोशिश की है। इससे तो यही बेहतर था कि यह तजवीज पेश ही न की जाती। सैयद शराफतअली साहब ने अगर ज्यादा गौर से काम लिया होता, तो वह कभी यह तरमीम पेश न करते।
शाकिरबेग ने कहा– कंप्रोमाइज मुलकी मुआमिलात में चाहे कितना ही काबिल-तारीफ हो, लेकिन इखलाकी मामलात में वह सरासर काबिले-एतराज है। इससे इखलाकी बुराइयों पर सिर्फ परदा पड़ जाता है।
सभापति सेठ बलभद्रदास ने रिज्योल्यूशन के पहले भाग पर राय ली। नौ सम्मतियां अनुकूल थीं, आठ प्रतिकूल। प्रस्ताव स्वीकृत हो गया।
फिर तरमीम पर राय ली गई, आठ आदमी उसके अनुकूल थे, आठ प्रतिकूल, तरमीम भी पास हो गई। सभापति ने उसके अनुकूल राय दी। डॉक्टर श्यामाचरण ने किसी तरफ राय नहीं दी।
प्रोफेसर रमेशदत्त और रुस्तम भाई और प्रभाकर राव ने तरमीम के स्वीकृत हो जाने में अपनी हार समझी और पद्मसिंह की ओर इस भाव से देखा, मानों उन्होंने विश्वासघात किया है। कुंवर साहब के विषय में उन्होंने स्थिर किया कि बातूनी, शक्की और सिद्धांतहीन मनुष्य है।
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