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वरदान (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :259
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8670

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‘वरदान’ दो प्रेमियों की कथा है। ऐसे दो प्रेमी जो बचपन में साथ-साथ खेले...


इन समुचित शब्दों से चतुर्दिक शांति छा गयी। जो जहां था वह वहां चित्र लिखित सा हो गया। इस मनुष्य के शब्दों में कहां का प्रभाव भरा था, जिसने सहस्र मनुष्यों के उमड़ते हुए उद्वेग को इस प्रकार शीतल कर दिया, जिस प्रकार कोई चतुर सारथी दुष्ट घोड़ों को रोक लेता है, और यह शक्ति उसे किसने दी थी? न उसके सिर पर राजमुकुट था, न वह किसी सेना का नायक था। यह केवल उस पवित्र और निःस्वार्थ जाति सेवा का प्रताप था, जो उसने की थी। स्वजाति सेवा के मान और प्रतिष्ठा के कारण वे बलिदान होते हैं, जो वह अपनी जति के लिए करता है। पण्डों और प्राग्वालों ने बालाजी का प्रतापवान रूप देखा और स्वर सुना, तो उनका क्रोध शान्त हो गया। जिस प्रकार सूर्य के निकलने से कुहरा फट जाता है उसी प्रकार बालाजी के आने से विरोधियों की सेना तितर बितर हो गई। बहुत से मनुष्य– जो उपद्रव के उदेश्य से आये थे– श्रद्वापूर्वक बालाजी के चरणों में मस्तक झुका उनके अनुयायियों के वर्ग में सम्मिलित हो गये। बदलू शास्त्री ने बहुत चाहा कि वह पण्डों के पक्षपात और मूर्खता को उतेजित करें, किन्तु सफलता न हुई।

उस समय बालाजी ने एक परम प्रभावशाली वक्तृता दी जिसका एक-एक शब्द आज तक सुनने वालों के हृदय पर अंकित है और जो भारतवासियों के लिए सदा दीप का काम करेगी। बालाजी की वक्तृताएं प्रायः सारगर्भित हैं। परन्तु वह प्रतिभा, वह ओज जिससे यह वक्तृता अलंकृत है, उनके किसी व्याख्यान में दीख नहीं पड़ते। उन्होंने अपने वाक्यों के जादू से थोड़ी ही देर में पण्डों को अहीरों और पासियों से गले मिला दिया। उस वक्तृता के अंतिम शब्द थे–

यदि आप दृढ़ता से कार्य करते जाएंगे तो अवश्य एक दिन आपको अभीष्ट सिद्वि का स्वर्ण-स्तम्भ दिखायी देगा। परन्तु धैर्य को कभी हाथ से न जाने देना। दृढ़ता बड़ी प्रबल शक्ति है। दृढ़ता पुरुष के सब गुणों का राजा है। दृढ़ता वीरता का एक प्रधान अंग है। इसे कदापि हाथ से न जाने देना। तुम्हारी परीक्षाएं होंगी। ऐसी दशा में दृढ़ता के अतिरिक्त कोई विश्वासपात्र पथ-प्रदर्शक नहीं मिलेगा। दृढ़ता यदि सफल न भी हो सके, तो संसार में अपना नाम छोड़ जाती है’।

बालाजी ने घर पहुंचकर समाचार-पत्र खोला, मुख पीला हो गया, और सकरुण हृदय से एक ठण्डी सांस निकल आई। धर्मसिंह ने घबराकर पूछा– कुशल तो है?

बालाजी– सदिया में नदी का बांध फट गया दस सहस्र मनुष्य गृहहीन हो गये।

धर्मसिंह– ओ हो!

बालाजी– सहस्रों मनुष्य प्रवाह की भेंट हो गए। सारा नगर नष्ट हो गया। घरों की छतों पर नावें चल रही हैं। भारत सभा के लोग पहुँच गये हैं और यथाशक्ति लोगों की रक्षा कर रहे हैं, किन्तु उनकी संख्या बहुत कम है।

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