सदाबहार >> वरदान (उपन्यास) वरदान (उपन्यास)प्रेमचन्द
|
1 पाठकों को प्रिय 24 पाठक हैं |
‘वरदान’ दो प्रेमियों की कथा है। ऐसे दो प्रेमी जो बचपन में साथ-साथ खेले...
धर्मसिंह– (सजल नयन होकर) हे ईश्वर। तू ही इन अनाथों का नाथ है।
बालाजी– गोपाल गोशाला बह गई। एक सहस्र गायें जलप्रवाह की भेंट हो गयीं। तीन घण्टे तक निरन्तर मूसलाधार पानी बरसता रहा। सोलह इंच पानी गिरा। नगर के उत्तरी विभाग में सारा नगर एकत्र है। न रहने को गृह है, न खाने को अन्न। शव की राशियां लगी हुई हैं बहुत से लोग भूखे मर रहे हैं। लोगों के विलाप और करुण-क्रन्दन से कलेजा मुंह को आता है। सब उत्पात– पीड़ित मनुष्य बालाजी को बुलाने की रट लगा रहे हैं। उनका विचार यह है कि मेरे पहुंचने से उनके दुःख दूर हो जायेंगे।
कुछ काल तक बालाजी ध्यान में मग्न रहे, तत्पश्चात बोले– मेरा जाना आवश्यक है। मैं तुरंत जाऊंगा। आप सदिया की, ‘भारत सभा’ को तार दे दीजिए कि वह इस कार्य में मेरी सहायता करने को उद्यत् रहें।
राजा साहब ने सविनय निवेदन किया– आज्ञा हो तो मैं चलूं?
बालाजी– मैं पहुंचकर आपको सूचना दूंगा। मेरे विचार में आपके जाने की कोई आवश्यकता न होगी।
धर्मसिंह– उत्तम होता कि आप प्रातःकाल ही जाते।
बालाजी– नहीं। मुझे यहां एक क्षण भी ठहरना कठिन जान पड़ता है। अभी मुझे वहां तक पहुचंने में कई दिन लगेंगे।
पल– भर में नगर में ये समाचार फैल गया कि सदिया में बाढ़ आ गयी और बालाजी इस समय वहां जा रहे हैं। यह सुनते ही सहस्रों मनुष्य बालाजी को पहुंचाने के लिए निकल पड़े। नौ बजते– बजते द्वार पर पचीस सहस्र मनुष्यों का समुदाय एकत्र हो गया। सदिया की दुर्घटना प्रत्येक मनुष्य के मुख पर थी लोग उन आपत्ति– पीड़ित मनुष्यों की दशा पर सहानुभूति और चिन्ता प्रकाशित कर रहे थे। सैकडों मनुष्य बालाजी के संग जाने को कटिबद्व हुए। सदियावालों की सहायता के लिए एक फण्ड खोलने का परामर्श होने लगा।
उधर धर्मसिंह के अन्तःपुर में नगर की मुख्य प्रतिष्ठित स्त्रियों ने आज सुवामा को धन्यावाद देने के लिए एक सभा एकत्र की थी। उस उच्च प्रासाद का एक-एक कोना स्त्रियों से भरा हुआ था। प्रथम वृजरानी ने कई स्त्रियों के साथ एक मंगलमय सुहावना गीत गाया। उसके पीछे सब स्त्रियां मण्डल बांधकर गाते– बजाते आरती का थाल लिए सुदामा के गृह पर आयीं। सेवती और चन्दा अतिथि-सत्कार करने के लिए पहले ही से प्रस्तुत थीं सुवामा प्रत्येक महिला से गले मिली और उन्हें आशीर्वाद दिया कि तुम्हारे अंक में भी ऐसे ही सुपूत बच्चे खेलें। फिर रानीजी ने उसकी आरती की और गाना होने लगा। आज माधवी का मुखमंडल पुष्प की भांति खिला हुआ था। कल की भांति मात्र वह उदास और चिंतित न थी। आशाएं विष की गांठ हैं। उन्हीं आशाओं ने उसे कल रुलाया था। किन्तु आज उसका चित्र उन आशाओं से रिक्त हो गया है। इसीलिए मुखमण्डल दिव्य और नेत्र विकसित हैं। निराश रहकर उस देवी ने सारी आयु काट दी, परन्तु आशापूर्ण रहकर उससे एक दिन का दुःख भी न सहा गया।
|