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वरदान (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :259
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8670

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‘वरदान’ दो प्रेमियों की कथा है। ऐसे दो प्रेमी जो बचपन में साथ-साथ खेले...


मुंशीजी के दो बेटे और एक बेटी थी। बड़ा लड़का राधाचरण गत वर्ष डिग्री प्राप्त करके इस समय रुड़की कॉलेज में पढ़ाता था। उसका विवाह फतेहपुर-सीकरी के एक रईस के यहां हुआ था। मंझली लड़की का नाम सेवती था। उसका भी विवाह प्रयाग के एक धनी घराने में हुआ था। छोटा लड़का कमलाचरण अभी तक अविवाहित था। प्रेमवती ने बचपन से ही लाड़-प्यार करके उसे ऐसा बिगाड़ दिया था कि उसका मन पढ़ने-लिखने में तनिक भी नहीं लगता था। पन्द्रह वर्ष का हो चुका था, पर अभी तक सीधा पत्र भी न लिख सकता था। मियाजी बैठे। उन्हें इसने एक मास के भीतर निकाल कर सांस ली। तब पाठशाला में नाम लिखाया गया। वहां जाते ही उसे ज्वर चढ़ आता और सिर दुखने लगता था। इसलिए वहां से भी वह उठा लिया गया। तब एक मास्टर साहब नियुक्त हुए और तीन महीने रहे; परन्तु इन दिनों में कमलाचरण ने कठिनता से तीन पाठ पढ़े होंगें। निदान मास्टर साहब भी विदा हो गए। तब डिप्टी साहब ने स्वयं पढ़ाना निश्चित किया। परन्तु एक ही सप्ताह में उन्हें कई बार कमला का सिर हिलाने की आवश्यकता प्रतीत हुई। साक्षियों के बयान और वकीलों की सूक्ष्म आलोचनाओं के तत्व को समझना इतना कठिन नहीं है, जितना किसी निरुत्साही लड़के के मन में शिक्षा-रुचि उत्पन्न करना।

प्रेमवती ने इस मारधाड़ पर ऐसा उत्पात मचाया कि अन्त में डिप्टी साहब ने भी झल्लाकर पढ़ाना छोड़ दिया। कमला कुछ ऐसा रूपवान, सुकुमार और मधुरभाषी था कि माता उसे सब लड़कों से अधिक चाहती थी। इस अनुचित लाड़-प्यार ने उसे पतंग, कबूतरबाजी और इसी प्रकार के अन्य कुव्यसनों का प्रेमी बना दिया था। सबेरा हुआ और कबूतर उड़ाए जाने लगे, बटेरों के जोड़ के छूटने लगे, संध्या हुई और पंतग के लम्बे-लम्बे पेंच होने लगे। कुछ दिनों में जुए का भी चस्का चल पड़ा था। दपर्ण, कंघी और इत्र-तेल में तो मानो उसके प्राण ही बसते थे।

प्रेमवती एक दिन सुवामा से मिलने गयी हुई थी। वहां उसने वृजरानी को देखा और उसी दिन से उसका जी ललचाया हुआ था कि यदि यह बहू बनकर मेरे घर में आए, तो घर का भाग्य जाग उठे। उसने सुशीला पर अपना यह भाव प्रकट किया। विरजन का तेरहवां आरम्भ हो चुका था। पति-पत्नी में विवाह के सम्बन्ध में बातचीत हो रही थी। प्रेमवती की इच्छा पाकर दोनों फूले न समाए। एक तो परिचित परिवार, दूसरे कुलीन लड़का बुद्धिमान और शिक्षित, पैतृक सम्पति अधिक। यदि इनसे नाता हो जाए तो क्या पूछना। चटपट रीति के अनुसार संदेश कहला भेजा।

इस प्रकार संयोग ने आज उस विषैले वृक्ष का बीज बोया, जिसने तीन ही वर्ष में कुल का सर्वनाश कर दिया। भविष्य हमारी दृष्टि से कैसा गुप्त रहता है?

ज्यों ही संदेशा पहुंचा, सास, ननद और बहू में बातें होने लगी।

बहू(चन्द्रा)– क्यों अम्मा। क्या आप इसी साल ब्याह करेंगी?

प्रेमवती– और क्या, तुम्हारे लालाली के मानने की देर है।

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