सदाबहार >> वरदान (उपन्यास) वरदान (उपन्यास)प्रेमचन्द
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‘वरदान’ दो प्रेमियों की कथा है। ऐसे दो प्रेमी जो बचपन में साथ-साथ खेले...
बहू– कूछ तिलक दहेज भी ठहरा?
प्रेमवती– तिलक-दहेज ऐसी लड़कियों के लिए नहीं ठहराया जाता।
जब तुला पर लड़की-लड़के के बराबर नहीं ठहरती, तभी दहेज का पासंग बनाकर उसे बराबर कर देते हैं। हमारी वृजरानी कमला से बहुत भारी है।
सेवती– कुछ दिनों घर में खूब धूमधाम रहेगी। भाभी गीत गायेंगी। हम ढोलक बजाएंगें। क्यों भाभी?
चन्द्रा– मुझे नाचना गाना नहीं आता।
चन्द्रा का स्वर कुछ भद्दा था, जब गाती, स्वर भंग हो जाता था। इसलिए उसे गाने से चिढ़ थी।
सेवती– यह तो तुम आप ही करो। तुम्हारे गाने की तो संसार में धूम है।
चन्द्रा जल गई, तीखी होकर बोली– जिसे नाच-गाकर दूसरों को लुभाना हो, वह नाचना-गाना सीखे।
सेवती– तुम तो तनिक-सी हंसी में रूठ जाती हो। जरा वह गीत गाओ तो‘– तुम तो श्याम बड़े बेखबर हो’। इस समय सुनने को बहुत जी चाहता है। महीनों से तुम्हारा गाना नहीं सुना।
चन्द्रा– तुम्हीं गाओ, कोयल की तरह कूकती हो।
सेवती– लो, तुम्हारी यही चाल अच्छी नहीं लगती। मेरी अच्छी भाभी, तनिक गाओ।
चन्द्रा– मैं इस समय न गाऊंगी। क्यों मुझे कोई डोमनी समझ लिया है?
सेवती– मैं तो बिन गीत सुने आज तुम्हारा पीछा न छोडूंगी।
सेवती का स्वर परम सुरीला और चित्ताकर्षक था। रूप और आकृति भी मनोहर, कुन्दन वर्ण और रसीली आंखें। प्याजी रंग की साड़ी उस पर खूब खिल रही थी। वह आप-ही-आप गुनगुनाने लगी–
आप तो श्याम पीयो दूध के कुल्हड़, मेरी तो पानी पै गुजर...
पानी पै गुजर हो। तुम तो श्याम
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