सदाबहार >> वरदान (उपन्यास) वरदान (उपन्यास)प्रेमचन्द
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‘वरदान’ दो प्रेमियों की कथा है। ऐसे दो प्रेमी जो बचपन में साथ-साथ खेले...
(२३) काशी में आगमन
जब से वृजरानी का काव्य-चन्द्र उदय हुआ, तभी से उसके यहां सदैव महिलाओं का जमघट लगा रहता था। नगर में स्त्रियों की कई सभाएं थीं उनके प्रबंध का सारा भार उसी को उठाना पड़ता था। उसके अतिरिक्त अन्य नगरों से भी बहुधा स्त्रियां उससे भेंट करने को आती रहती थीं जो तीर्थयात्रा करने के लिए काशी आता, वह विरजन से अवश्य मिलता। राजा धर्मसिंह ने उसकी कविताओं का सर्वांग-सुन्दर संग्रह प्रकाशित किया था। भारतवर्ष की कौन कहे, यूरोप और अमेरिका के प्रतिष्ठित कवियों ने उसे उनकी काव्य मनोहरता पर धन्यवाद दिया था। भारतवर्ष में एकाध ही कोई रसिक मनुष्य रहा होगा, जिसका पुस्तकालय उसकी पुस्तक से सुशोभित न होगा। विरजन की कविताओं को प्रतिष्ठा करने वालों में बालाजी का पद सबसे ऊंचा था। वे अपनी प्रभावशालिनी वक्तृताओं और लेखों में बहुधा उसी के वाक्यों का प्रमाण दिया करते थे। उन्होंने ‘सरस्वती’ में एक बार उसके संग्रह की सविस्तार समालोचना भी लिखी थी।
एक दिन प्रातः काल ही सीता, चन्द्रकुंवरि, रुक्मिणी और रानी विरजन के घर आयीं। चन्द्रा ने इन स्त्रियों को फर्श पर बिठाया और आदर-सत्कार किया। विरजन वहां नहीं थी क्योंकि उसने प्रभात का समय काव्य चिन्तन के लिए नियत कर लिया था। उस समय यह किसी आवश्यक कार्य के अतिरिक्त सखियों से मिलती-जुलती नहीं थी। वाटिका में एक रमणीक कुंज था। गुलाब की सुगंध से सुरभित वायु चलती थी। वहीं विरजन एक शिलायन पर बैठी हुई काव्य-रचना किया करती थी। वह काव्य रूपी समुद्र से जिन मोतियों को निकालती, उन्हें माधवी लेखनी की माला में पिरो लिया करती थी। आज बहुत दिनों के बाद नगरवासियों के अनुरोध करने पर विरजन ने बालाजी को काशी आने का निमंत्रण देने के लिए लेखनी को उठाया था। बनारस ही वह नगर था, जिसका स्मरण कभी-कभी बालाजी को व्यग्र कर दिया करता था।
किन्तु काशी वालों के निरंतर आग्रह करने पर भी उन्हें काशी आने का अवकाश न मिलता था। वे सिंहल और रंगून तक गये, परन्तु उन्होंने काशी की ओर मुख न फेरा। इस नगर को वे अपना परीक्षा भवन समझते थे। इसलिए आज विरजन उन्हें काशी आने का निमंत्रण दे रही है। लोगों का विचार है कि यह निमन्त्रण उन्हें अवश्य खींच लाएगा। जब कोई नवीन विचार आ जाता है, तो विरजन का चन्द्रानन चमक उठता है, और माधवी के बदन पर प्रसन्नता की झलक आ जाती है। वाटिका में बहुत से पाटल-पुष्प खिले हुए हैं, रजनी की ओस से मिलकर वे इस परम शोभा दे रहे हैं, परन्तु इस समय जो विकास और छटा इन दोनों पुष्पों पर है, उसे देख-देखकर दूर से फूल लज्जित हुए जाते हैं।
नौ बजते-बजते विरजन घर में आयी। सेवती ने कहा– आज बड़ी देर लगाई।
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