उपन्यास >> अवतरण अवतरणगुरुदत्त
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हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।
मेरे इस संशय को सुनकर माणिकलाल मुस्कराकर कहने लगा, ‘‘किसी छोटी-सी बात को समझने के लिये भी तो उसके उद्देश्य को समझने की आवश्यकता होती है न? तभी तो उस बात के विषय में वास्तविकता को जाना जा सकता है।’’
‘‘हाँ, यह तो है ही।’’
‘‘तो क्या आप जानते हैं कि महाभारत लिखने का उद्देश्य क्या था?’’
‘‘मैं तो समझता हूँ कि उस समय के पढ़े-लिखे मूर्खों के मनोरंजनार्थ ही यह लिखा गया प्रतीत होता है।’’
मूर्खों और पढ़े-लिखों की बात सुनकर वह हँस पड़ा। मैं विस्मय से उसके हँसने को देखता रहा। मैं समझता था कि वह अपने पक्ष की दुर्बलता को छिपाने के लिए हँस रहा है। अन्यथा मुझको अपने कथन में कुछ भी असंगत प्रतीत नहीं हुआ था। मुझको विस्मय में देख उसने कहा, ‘‘यह बात नहीं है वैद्यजी! कभी आपने ‘अलिफ लैला’ पढ़ी है?’’
‘‘हाँ पढ़ी है।’’
‘‘युलिसिस पढ़ी है?’’
‘‘हाँ, वह भी पढ़ी है।’’
‘‘ये पुस्तकें इतिहास नहीं हैं। इस पर भी उनका अपना उद्देश्य है। इसी प्रकार महाभारत लिखने का भी अपना एक उद्देश्य है। यद्यपि वह उद्देश्य वही नहीं जो अलिफ लैला का है इस पर भी उद्देश्य तो है ही।’’
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