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गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :590
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9552

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हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।


‘‘ये कथाएँ उस काल के इतिहास की पृष्ठभूमि पर लिखी गयी हैं। जैसे आजकल ऐतिहासिक उपन्यास लिखे जाते हैं वैसे ही ये हैं।’’

‘‘तो आपके कहने का अर्थ मैं यह समझूँ कि ऐतिहासिक उपन्यास की भाँति महाभारत में जहाँ इतिहास है वहाँ कल्पना भी है?’’

‘‘हाँ, इस पर भी कल्पना सोद्देश्य है।’’

‘‘किन्तु इसमें से इतिहास और कल्पना को पृथक्-पृथक् किस प्रकार किया जा सकता है?’’

‘‘क्या आवश्यकता है पृथक् करने की। लिखने का उद्देश्य तो काल्पनिक नहीं, उसको ग्रहण कीजिए।’’

‘‘आखिर इतनी बड़ी पुस्तक लिखने का उद्देश्य क्या हो सकता है?’’

‘‘उद्देश्य तो स्पष्ट है ही। जिस काल की महाभारत कथा है वह काल भारतवर्ष में एक महान् संकट का काल था। एक विदेशी संस्कृति का वैदिक संस्कृति से एक महान् तथा भयंकर संघर्ष हुआ था। उसमें वैदिक संस्कृति तथा धर्म की विजय हुई थी। इस सब विवरण को व्याख्या सहित और उसमें कारणों को वर्णन करने के लिए महाभारत ग्रन्थ लिखा गया था।’’

‘‘कौरवों और पाण्डवों में युद्ध भारतीय और अभारतीय संस्कृतियों और धर्मों के संघर्ष का प्रतीक ता। इसमें भारतीय संस्कृति की विजय हुई थी। इस कारण इस ग्रन्थ का नाम जो कृष्ण द्वैपायनजी ने रखा था, ‘जय’ था। अर्थात् भारतीयता की जय की यह कथा थी। पीछे जब व्यास जी के शिष्यों ने इसमें बहुत-कुछ मिला दिया तो इसका नाम महाभारत रख दिया गया।’’

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