उपन्यास >> अवतरण अवतरणगुरुदत्त
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हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।
‘‘इससे पू्र्व कई देवता इस प्रकार असुरों की सुन्दर कन्याओं के वशीभूत होकर असुर बन गये थे। इससे वृषपर्वा इस आशा में चुप था।’’
‘‘परन्तु समय व्यतीत हो रहा था और कच तथा देवयानी समीप-समीप रहने पर तथा अकेले वन-विहार करते हुए भी सदा बहिन-भाई के रूप में ही रहते रहे। जब असुराधिपति ने देखा कि उसकी आशा पूर्ण होती नहीं दिखाई दे रही तो उसने इसके पूर्व कि कच संजीवनी विद्या प्राप्त कर ले, उसको मार डालने का निश्चय कर लिया।’’
‘‘एक दिन कच यज्ञ के लिए समिधा बटोरने वन में गया हुआ था। देवयानी गउओं को चारा डाल रही थी कि वृषपर्वा के सेवकों ने कच को जंगल में घेरकर मार डाला और इस बात को आचार्यजी से छिपाकर रखने के लिए कच के शरीर के टुकडे-ठुकड़े कर कुत्तों को खिला दिया।’’
‘‘जब बहुत देर तक कच समिधा लेकर नहीं लौटा तो देवयानी जो कच से प्रगाढ़ प्रेम करने लगी थी, चिन्ता अनुभव करने लगी। उसने यह चिन्ता अपने पिता से भी व्यक्त की शुक्राचार्य ने अपनी दिव्य-दृष्टि से पूर्ण बात जान ली और अपनी संजीवनी विद्या से कच के शरीर को कुत्तों के पेटों में से निकालकर पुनः जीवत कर दिया कुत्तों के पेट फट गये। कच के शरीर के टुकड़े बाहर निकल एकत्र हो पूर्ण शरीर बन गया और वह जीवित हो गया।’’
‘‘कच जब आश्रम में लौटकर आया तो आचार्यजी ने उस पर घटित घटना का वर्णन किया। उन्होंने यह भी बताया कि देवयानी के आग्रह पर ही उसको जीवित किया गया है।’’
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