लोगों की राय

उपन्यास >> अवतरण

अवतरण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :590
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9552

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

137 पाठक हैं

हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।


‘‘इस घटना के पश्चात् कच ने वन में अकेला जाना छोड़ दिया। वह प्रायः देवयानी के साथ ही वन में जाता था। एक बार देवयानी के श्रृंगार के लिए कच वन से फूल लाने के लिए गया तो वह पुनः वृष पर्वा के सेवकों के हाथ में पड़ गया। इस बार उन्होंने उसे मारकर उसके शरीर का चूर्ण बनाकर उसे समुद्र में फेंक दिया। परन्तु उनके विस्मय का ठिकाना नहीं रहा, जब शुक्राचार्य ने समुद्र के रेत में मिले परमाणुओं में से कच के शरीर के परमाणु निकाले और उनके संयोग के कच का शरीर बना, उसमें जीवन-दान कर दिया।’’

‘‘इस घटना से तो वृषपर्वा बहुत चिन्तातुर हो गया। इससे उसने अगली बार ऐसी परिस्थिति उत्पन्न करने की योजना बना डाली, जिससे आचार्यजी उसको जीवित ही न कर सकें। अतः इस बार अवसर मिलने पर उसने कच को मरवाकर उसके शरीर को भस्म कर दिया और वह भस्य मदिरा में मिला दी। इतना ही नहीं, प्रत्युत उस मदिरा को शुक्राचार्यजी को पिला दिया।’’

‘‘वृषपर्वा का विचार था कि यदि इतना होने पर भी आचार्यजी कच को जीवित करने का प्रयत्न करेंगे तो उन्हें स्वयं की हत्या करनी पड़ जायेगी। किन्तु वे ऐसा करेंगे नहीं, इस प्रकार कच सदा के लिए समाप्त हो जायेगा।’’

‘‘जब आचार्यजी ने जाना कि वह उनके ही पेट में हैं, तो वे बहुत चिन्तित हुए। देवयानी भी विलाप कर रही थी। आचार्यजी ने अपनी लड़की को वास्तविक स्थिति में अवगत कराया तो देवयानी विह्वल हो रोने लगी। शुक्राचार्य की देवयानी ही एक-मात्र सन्तान थी। उसके दुःख को देखकर वे भी अधीर हो गये। उन्होंने अपनी लड़की को बताया, ‘यदि अब कच को जीवित किया तो वह मेरा ही पेट फाड़कर बाहर आयेगा और तुम से पितृ-विहीन हो जाओगी।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book