उपन्यास >> अवतरण अवतरणगुरुदत्त
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हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।
‘‘पर पिताजी!’ देवयानी ने कहा, कोई ऐसा उपाय करिये जिससे वे भी बच जायें और आपका जीवन भी बना रहे।’’
‘‘यह तभी सम्भव हो सकता है, जब मैं उसको पहले अपने शरीर में जीवित कर, उसको संजीवनी विद्या का दान करूँ और फिर यह मेरे पेट से बाहर आकर उस विद्या से मुझको जीवित करे।’’
‘‘तो ऐसा कर दीजिये, पिताजी! किसी भी भाँति उसकी रक्षा कीजिये। उसके बिना मेरा जीवन नहीं रह सकता।’’
‘‘उसको संजीवनी विद्या देनी पड़ेगी।’’
‘‘पर आप तो उसको पूर्ण विद्या सिखाने वाले थे न।’’
‘‘यह ठीक है देवयानी! परन्तु वह देवता है। मैं प्रतीक्षा कर रहा था कि वह तुमसे विवाह कर ले, तभी उसे यह विद्या दूँ।’’
‘‘‘वह मुझसे बहुत प्रेम करता है, सदा मेरी इच्छाओं का ध्यान रखता है और यदि वह मर गया तो फिर विवाह कैसे होगा?’ उसने याचना के भाव से कहा, पिताजी उसको जीवित कर दीजिए।’’
‘‘अपनी लड़की के मोह में फँसकर शुक्राचार्य ने कच को संजीवनी विद्या सिखा दी। तत्पश्चात् उसको आदेश दिया, ‘देखो कच! इस समय तुम मेरे पेट में हो। जब तुम बाहर आओगे तो मैं मर जाऊँगा। अतः तुम मुझे इस विद्या से जीवित कर देना।’’
‘‘इसके पश्चात् कच को बाहर आने का आदेश दिया गया। बाहर आने पर उसने अपनी विद्या से आचार्यजी को जीवित कर दिया।’’
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