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गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :590
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9552

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हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।

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माणिकलाल ने एक क्षण तक साँस लेकर आगे बताया, ‘‘शुक्राचार्य वृषपर्वा से रुष्ट होकर कामभोज में आ गये। कामभोज दानव-लोक और देवलोक के मध्य में स्थित था। कश्मीर अर्थात् कश्यप मुनि की बसाई घाटी इस समय देवताओं के अधीन थी। चन्द्रवंशी लोग गांधार-पांचाल देश तथा गंगा-यमुना के तटवर्ती देशों में बसे हुए थे। इनका राज्य प्रयाग राज्य से लेकर कामभोज तक फैला हुआ था। उस समय नहुष के पुत्र ययाति ने अपनी राजधानी प्रतिष्ठानपुरी में बनाई हुई थी। इस राज्य की सीमा भी कामभोज से मिलती थी।

‘‘शुक्राचार्य जी के रुष्ट हो जाने से वृषपर्वा को बहुत चिन्ता लग गई। वह जानता था कि न तो कच मरा और न ही संजीवनी विद्या देवताओं के पास जाने से रोकी जा सकी। साथ ही आचार्यजी के चले जाने से दानवो का पक्ष भी अत्यन्त दुर्बल हो गया। इस कारण वह कामभोज में शुक्राचार्यजी के आश्रम में पहुँच उनकी मिन्नत करने लगा। आचार्यजी उससे इस कारण रुष्ट थे कि उसने कच की भस्म उनको पिलाकर मार ही डाला था। इसके साथ ही देवयानी भी वृषपर्वा से रुष्ट थी। एक बार वृषपर्वा की लड़की शर्मिष्ठा ने देवयानी का अपमान कर दिया था। जब वह वृपषर्वा की नगरी में थी तब एक दिन दोनों लड़कियाँ अपनी सहेलियों के साथ चैत्ररथ नामक उद्यान के एक सरोवर में जल-क्रीडा कर रही थीं। उन्होने अपने कपड़े सरोवर के तट पर उतारकर रखे हुए थे। उन दिनों कच शुक्राचार्यजी के पास रहता था और कच की देख-भाल तथा रक्षा के लिए इन्द्र गुप्त रूप में भ्रमण करता हुआ उस वन में निकल आया। वह यह जान की शर्मिष्ठा और देवयानी इकट्ठी जल-क्रीडा कर रही हैं, वहां चोरो-चोरी पहुँच गया और शर्मिष्ठा के कपड़ों के स्थान पर देवयानी के कपड़े और देवयानी के कपडों के स्थान पर शर्मिष्ठा के कपड़े रख गया।’’

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