उपन्यास >> अवतरण अवतरणगुरुदत्त
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हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।
‘‘दोनों सायंकाल अँधेरा हो जाने पर जल से निकलीं और अपने कपड़ों के समीप पहुँच उन्होंने कपड़े पहन लिये। देवयानी ने कपड़े पहने तो उसे कुछ पता नहीं चला परन्तु जब शर्मिष्ठा कपड़े पहन देवयानी के पास आई तो अपने कपड़े देवयानी को पहने देख क्रोध से भर गई। देवयानी को बहुत जली-कटी सुनाई और कहा, एक भिखारी की लड़की होकर तुम्हें पता नहीं चला कि किसके कपड़े पहन रही हो?’’
‘‘अब देवयानी ने भी उसको कह दिया कि उसके पिता ही है, जो सब दानवों और असुरों की जीवन-रक्षा करते रहते हैं अन्यथा सब असुर और दानव अब तक देवताओं के दिव्यास्त्रों से परलोक गमन कर गये होते।’’
‘‘इस पर शर्मिष्ठा को क्रोध चढ़ आया। उसने अपनी दासियों को आज्ञा दे दी कि देवयानी को उठाकर कुएँ में फेंक दिया जाए। आज्ञा का पालन किया गया।’’
‘‘अकस्मात् वहाँ, उसी रात नरेश ययाति, जो किसी समय शुक्राचार्यजी से राजनीति की शिक्षा पा चुके थे, मृगया करते हुए, उस कुएँ के समीप पहुँच गये। उनको प्यास लगी थी, अतः जब वह जल निकालने लगे तो देवयानी ने उस रस्सी को पकड़ लिया और आवाज़ दी, ‘मुझको कुएँ से निकालो।’ उत्तर में ययाति ने पूछा, कौन हो तुम?’’
‘‘देवयानी ने अपना परिचय दिया और बताया कि वह घटनावश उस कुएँ में गिर पड़ी है। ययाति ने उसे ऊपर खींचा और उसका हाथ पकड़ कर कुएँ से बाहर निकाल लिया।’’
‘‘जब देवयानी ने ययाति को देखा तो पहचान लिया। ययाति भी शुक्राचार्य का शिष्य रह चुका था।’’
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