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गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :590
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9552

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हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।

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जब मैं बम्बई से इस गाड़ी में बैठा था, मैं अपने वैद्य-समाज और भारत की समस्याओं में उलझा हुआ दिल्ली पहुँच कार्य करने की योजना बनाने में लीन था। परन्तु पिछली रात और उस दिन गाड़ी में इस माणिककाल वकील से सम्पर्क बनने पर मेरा मन उन छोटी-छोटी समस्याओं से निकल विश्व की एकमात्र महान् समस्या की ओर लग गया। वह महान् समस्या थी मनुष्य की इस सृष्टि में यात्रा। आदि काल से मानव किस ओर अभिमुख होता रहा है? और क्या वह दिशा जिधर वह जा रहा है, उचित और उसके हित में है?

चाहे तो यह मान लें कि इस सृष्टि पर मनुष्य के बनते ही परमात्मा ने उसको ज्ञान-दान किया था और चाहे यह मानें कि मनुष्य पशु से उन्नति कर मानव-पद पर पहुँचा है, यह मानना ही पड़ेगा कि उसकी प्रगति शुभ की ओर नहीं रही।

आजसभ्य कहे जाने वालों देशों में विज्ञान की अप्रत्याशित उन्नति हुई है। एक प्रकार से संसार में मशीन और विज्ञानरूपी क्रान्ति घट रही है। इस पर भी मानव-मन तो वैसा-का-वैसा ही है, जैसा कि महाभारत-काल में वर्णन किया गया है। व्यासजी ने कोई सत्य कथा लिखी है अथवा काल्पनिक यह विवादास्पद बात नहीं। वास्तविक बात यह है कि यदि आज के युग में हिटलर उत्पन्न हुआ तो अतीत में वृषपर्वा हो चुका है। यदि आज रूस में स्टालिन का राज्य है तो पूर्वकाल में नहुष हो चुका है। यदि आज रूस हंगरी पर अपने शासन के लिए नर-संहार करता है तो दुर्योधन को भी अपने पाँच गाँव बचाने के लिए महाभारत का युद्ध उचित प्रतीत हुआ था।

अतः सोचना होगा कि किस बात में हमने उन्नति की है! आज सुन्दर पत्नियों के पति राजदूत बनाये जाते हैं तो मेनका ने विश्वामित्र को पथच्युत कर कौन-सा अनर्थ किया था? आज से कुछ देर ही पहले भारत के नरेशों को मूर्ख बना उनसे देश-द्रोह कराने के लिए अँग्रेज वेश्याओं को भेजा जाता था। यही बात आज से कई सहस्त्र वर्ष पूर्व इन्द्र भी करता था।

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