धर्म एवं दर्शन >> ज्ञानयोग ज्ञानयोगस्वामी विवेकानन्द
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स्वानीजी के ज्ञानयोग पर अमेरिका में दिये गये प्रवचन
चतुर्थ प्रवचन
मनुष्य नामधारी सभी लोग अब भी यथार्थ मनुष्य नहीं हैं। प्रत्येक को इस संसार का निर्णय अपने मन से करना होता है। उच्चतर बोध अत्यधिक कठिन है। अधिकतर लोगों को साकार वस्तु भावात्मक वस्तु से अधिक जँचती है! इसके उदाहरण के रूप में एक दृष्टान्त है। एक हिन्दू और एक जैन बम्बई के किसी धनी व्यापारी के घर में शतरंज खेल रहे थे। घर समुद्र के निकट था, खेल लम्बा था। जिस छज्जे पर वे बैठे थे, उसके नीचे जल-प्रवाह ने खिलाड़ियों का ध्यान आकृष्ट किया। एक ने उसे पौराणिक कथा द्वारा समझाया कि देवगण अपने खेल में जल को एक बड़े गढ़े में डाल देते हैं और फिर उसे वापस फेंक देते हैं। दूसरे ने कहा, ''नहीं, देवता उसे एक ऊँचे पहाड़ पर उपयोग के लिए खींचते हैं और जब उनका काम हो जाता है, वे उसे फिर नीचे फेंक देते हैं।'' एक नवयुवक विद्यार्थी, जो वहाँ उपस्थित था, उन पर हँसने लगा और बोला, ''क्या आप नहीं जानते कि चन्द्रमा का आकर्षण ज्वार-भाटा उत्पन्न करता है?'' इस पर वे दोनों व्यक्ति, उससे क्रोधपूर्वक भिड़ गये और बोले कि क्या वह उन्हें मूर्ख समझता है? क्या वह मानता है कि चन्द्रमा के पास ज्वार-भाटे को खींचने के लिए कोई रस्सी है अथवा वह इतनी दूर पहुँच भी सकता है? उन्होंने इस प्रकार की किसी भी मूर्खतापूर्ण व्याख्या को मानना अस्वीकार कर दिया! इसी अवसर पर उनका मेजबान कमरे में आया और दोनों पक्षों ने उससे पुनर्विचार की प्रार्थना की। वह एक शिक्षित व्यक्ति था और सचमुच सत्य क्या है, जानता था, किन्तु यह देखकर कि शतरंज खेलनेवालों को यह समझाना असम्भव है, उसने विद्यार्थी को इशारा किया और तब ज्वार-भाटे की ऐसी व्याख्या की जो उसके अज्ञ श्रोताओं को पूर्णतया सन्तोषजनक मालूम हुई। उसने शतरंज खेलनेवालों से कहा, ''आपको जानना चाहिए कि बहुत दूर महासागर के बीच एक विशाल स्पंज का पहाड़ है। आप दोनों ने स्पंज देखा होगा और जानते होंगे, मेरा आशय क्या है! स्पंज का यह पर्वत बहुत-सा जल सोख लेता है और तब समुद्र घट जाता है। धीरे-धीरे देवता उतरते हैं और स्पंज पर्वत पर नृत्य करते हैं। उनके भार से सब जल निचुड़ जाता है और समुद्र फिर बढ़ जाता ड़ै।
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